________________ धार्मिक-वहीवट विचार यह केसी खतरनाक घटना है ? लेकिन निरुत्साही हुए श्री जैनसंघने बिन खास कोइ प्रतिकार किये बिना इस घटना को स्वीकार लिया है / __अब भविष्यमें प्रत्येक ट्रस्टमें हरिजनो आदिको कुल ट्रस्टी-संख्याके 1/3 के हरिजनों आदिको फरजियात रखनेका और प्रत्येक ट्रस्ट में एक सरकारी कक्षाके अधिकारीको नियुक्त करनेका कानून आ रहा है / श्री संघ अपना मनवाञ्छित कोई भी काम न कर पाये, उसके लिए यह सरकारी अधिकारी देखभाल करेगा / हरिजन आदि स्तरके ट्रस्टी प्रत्येक मंदिरको सार्वजनिक बनानेकी कोशिश करेगें। ___ यदि इस परिस्थितिका सुसंगठित होकर श्रावक संघ यदि प्रतिकार नहीं करंगा तो धर्मके इन स्थानोंकी शास्त्रीय पद्धतिका निर्वाह करना असंभव होगा / ऐसा होने पर धर्मकी आराधनाएँ शिथिल हो पायेंगी; बंध होने लगेगी। भारत सरकारका संविधान बिनसांप्रदायिकताका समर्थक है / अत: भारतीय प्रजाको निधर्मी (नास्तिक) बनानेकी ओर ही उसका हर कदम हो, यह स्वाभाविक है; लेकिन धर्मी लोंगोको उसका विरोध करना ही चाहिए न ? ऐसे समयकी संभावना है कि मंदिरोंकी समृद्धिका उपयोग सार्वजनिक कार्यो -हिंसक, विलासप्रेरक आदिमें- करनेके लिए विवश बनाया जाय / उस समय श्री संघके अग्रणी जैनाचार्य सकल संघको आदेश दें कि, “अब जैनमंदिरके भंडारों में पैसे डालना बंद कर दो / सारी उछामनियाँकी बोलियाँ रूकवा दो / '" क्या ऐसी परिस्थिति तक जाना पडेगा? वास्तवमें तो आजसे ही ऐसी अशास्त्रीय बातों के विरुद्ध आवाज उठानेका काम शुरू कर देना चाहिए / ऐसे वातावरणको देखकर कहनेके लिए दिल होता है कि मंदिरों में पत्थर और प्रतिमाके सिवा किसी भी चीजको- मूल्यवान आभूषण, चांदीके भंडार, चांदीके रथ आदि-अब नहीं रखना चाहिए / आधी रातको कोई चोर आये, तो उसे कुछ भी हाथ न लगे, ऐसी स्थितिका सर्जन इच्छनीय है / यदि ऐसा न हुआ तो, या तो चोर, या पूजारी, या मुनीम या अन्तमें सरकार, सारी मिलकतको चट कर जायेंगे, ऐसा मुझे लगता है। यदि पिछडे-कमजोर वर्गोंकी सत्ताका भय आनेवाला ही हो तो संपत्तिका एकत्रीकरण न होने देना, यही एक मात्र तात्कालिक उपाय मुझे अत्यंत उचित लगता है।