________________ 5698885604565668 द्वितीय खंड "चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्रोत्तरी" -जिनमर्ति और जिनमंदिर ( 1 + 2) प्रश्रोत्तरी प्रश्न : (1) जिन प्रतिमा किसमेंसे बनायी जाय ? कितने प्रमाणकी बनायी जाय ? कौन बना सकता है ? उत्तर : रत्नकी, हीरेकी, पाषाणकी, पंचधातुकी, रेत तककी भी जिनप्रतिमा बना सकते हैं / प्रत्येक श्रावक उपकारी भगवंतकी प्रतिमा अवश्य बनायें / जिसकी जितनी आर्थिक पहुँच, उतनी बनायें / अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ भगवंतकी प्रतिमा, राजा रावणके दूतोंने बनवायी थी / नदीकी रेतमें से (वालुकासे) बनायी थी / कमसे कम एक अंगुल प्रमाणकी और आगे बढकर बहुत बडी किन्तु विषम अंगुलकी बनायी जाय / प्रश्न : ( 2 ) संगमरमर लानेकी विधि कैसी है ? उत्तर : ‘पोडशक' ग्रंथमें इस विधिका वर्णन किया गया है / संक्षिप्तमें . न्यायोपार्जित द्रव्यका उपयोग करें / कारीगरोंको खुश रखे / खानके अधिष्ठाता की आज्ञा पानेके लिए तप, पाषाण पूजा आदि किया जाय / उस गाँवके लोंगोंको प्रीतिदान करें आदि / _ 'नैगमनयसे' तो सूचित किया जाता है कि वह संगमरमरका पत्थर भी प्रतिमा ही है, अत: बहुमान सह पाषाण लाना चाहिये / / प्रश्न : (3) प्रतिमाजी गलेसे खंडित होने पर क्या किया जाय ? .. उत्तर : क्रियाकारक को बुलाकर उस प्रतिमामेंसे प्राण-प्रतिष्ठादि वापस खींच लेनेकी विधि कराकर उसका विधिपूर्वक नदी या समुद्रकी जलराशिमें विसर्जन कराये / पंचधातुकी प्रतिमा पर पुजारी लोग जब पूरी ताकत से वालाकुंची घिसते हैं, तब उनके नाक, कान आदि धीरे धीरे निर्मूल हो जाते हैं / ऐसी स्थितिमें प्रतिमा पूजनीय नहीं रह पाती / उसका विधिवत् विसर्जन करना चाहिए / अत एव यथासंभव . वालाकुंचीका उपयोग न करे तो अच्छा है / संगमरमरकी प्रतिमामें कहीं दरार होनेसे या गलेके सिवा किसी अंगका खंडन