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________________ सामान्य सूचनाएँ सही पितृभक्ति मानी जायेगी। ___ अत: मैंने पहले सूचित किया है वैसे यदि शुभ (सर्वसाधारण) या आखिर साधारण खातेमें रकमका दान किया जाय तो, उस रकमकी जिस समय जिस खातेमें आवश्यकता हो, वहाँ उपयोग किया जाय / तीर्थयात्रा पर जानेवाले लोग, इस बातका ख्याल रखते हुए, उन उन तीर्थस्थलोंके सर्वसाधारण खातोंमें रकम जमा करें, यह मुझे बहुत उचित लगता है। उसके बाद दूसरे स्थान पर वहाँके कार्यकर्तागणके पुरस्कारफंडमें अच्छीखासी रकम जमा कराये, जिससे कार्यकर्तागण, गरीबी, महँगाई आदि आरामसे मुकाबला कर सके / भंडार आदिकी चीजोंकी चोरी करनेकी वृत्ति ही पैदा न होगी। (6) विद्वान व्याख्यानकार और संयमचुस्त मुनिराज, यथासमय दानधर्मके लिए गृहस्थोंके एसी प्रभावक उपदेशना दे जिससे उनकी धनमूर्छा एक साथ उतर जाय / वे बड़ी रकमोंका लिखानेके लिए तत्पर हो जायँ / ऐसे अवसर पर उन लोगोंको देवद्रव्यके घाटेको योग्य सूदके साथ पूरा कर देनेकी प्रेरणा देनी चाहिए / अशास्त्रीय मार्ग : (1) दस आनी देवद्रव्य, छह आना साधारण (2) सरचार्ज (3) किसी प्रिमियर शोका आयोजन आदिको-त्याज्य कराना चाहिए / ऐसे पुण्यशाली मुनिलोग सूदको वर्ण्य न करा दें / उनका उपदेश धनमूर्छाका जहर निकाल सके तो उसका पूरा लाभ उन्हें उठाना चाहिए / जिन संघोंको ऐसे पुण्यशाली, संयमशील महात्मा प्राप्त नहीं होते, उन्हें पूर्वोक्त अशास्त्रीय मार्ग अपनानेकी संभावना उठानी पडती है, जो बिलकुल उचित नहीं / (7) आज धार्मिक (रिलिजिअिस) या सार्वजनिक (चेरिटेबल) माने जानेवाले ट्रस्ट और उनकी संपत्ति- परका संघका आधिपत्य हटाकर चेरिटी कमिशनर (सरकार) मालिक बन गया है / उनको बिना पूछे ट्रस्टीलोग कोई विशेष कार्यवाही कर नहीं पाते / भगवान के हारको भगवान के मुकुटमें परिवर्तन करना हो तो भी उसकी मंजूरी लेनी पड़ती है / इसीसे स्पष्ट होता है कि मालिक वह है, श्री संघ नहीं / भूतपूर्व आयर कमिशनने अपने अहवालमें विज्ञापित किया है कि "केवल पूजाविधि आपकी इच्छानुवर्ती, बाकी मूर्ति, माला, मंदिर आदि सब कुछ सरकारकी मालिकियत / पूजा विधि आप लोग अपनी विधि अनुसार कर सकते हैं; लेकिन मूर्ति आदिमें हमसे बिना पूछे कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकते / " हेरिटेजके नाम पर बम्बईमें शान्तिनाथ जिनालयका जीर्णोद्धार भी रुकवा / . दिया है।
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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