________________ धार्मिक-वहीवट विचार प्रत्यक्षरूपमें सहायक बने, उस महादोषमेंसे यहाँ मुक्ति मिलती है। - भूतकालमें धार्मिक खातोंकी आमदनीकी रकम सज्जन साहुकारोंके पास सूद पर रखी जाती थी, लेकिन उस रकमके सामने उतनी ही रकमके गहने या सोनाचांदी, उस साहुकारके पास से संघ रख लेता था / यदि दुर्भाग्यवश साहुकारकी पीढी कमजोर हो या दिवाला निकाले तो अमानत की चीजोंका उपयोग कर संघ अपनी रकम प्राप्त कर लेता था / लेकिन यदि इस प्रकार कोई पीढी प्राप्त न हो तो, संघ उस रकममें वृद्धिबढावा करने की बात पर रोक लगाकर उस पूंजीको अपने पास ही रखता था / सोनाचांदीके रूपमें संग्रह कर लेता था / धार्मिक द्रव्यमें बढौतरी करनी ही चाहिए; लेकिन उसमें यदि पूंजीकी सलामती न हो अथवा अगर अन्यायी रीति-नीतिसे बढौतरी होती हो तो, वैसा न किया जाय / साहुकार दो प्रतिशत सूद दे और कोई कसाई, दाणचोर आदि पांच प्रतिशत सुद दे तो भी उसे रकम दी न जाय; क्योंकि उनके व्यावसायिक स्तर अधमाधम योग्य नीति-रीतिसे धार्मिक द्रव्यमें वृद्धि करना, उसे प्रत्येक श्रावकका प्रथम पुण्यजनक कर्तव्य माना गया है / . (4) जिस ट्रस्टीका व्यापार संबद्ध खाता जिस बैकमें हो, उस बैकमें वह ट्रस्टी अपने धार्मिक ट्रस्टका खाता न खुलवाये / यदि ऐसा होगा तो बैंक मेनेजर उस आदमीको धार्मिक ट्रस्टकी रकम पर-साख पर- व्यवसायमें ऊँची रकम देनेके लिए तत्पर रहेगा / ऐसा होनेसे उस ट्रस्टीको धार्मिक द्रव्यका लाभ उठानेका दोष लगेगा। आज कई लोग, समृद्ध ट्रस्टोंमें ट्रस्टी बनने के लिए दोडादोड़ कर रहे है, उसका मुख्य कारण यह बात है / दिवाला निकालनेवाले ट्रस्टों और कर्ज के बोझवाले ट्रस्टोंके ट्रस्टी बननेमें क्यों कोई दिलचस्पी नहीं दिखलाता ? (5) सामान्यतया सबसे श्रेष्ठ पुण्यबंधका खाता देवद्रव्यका खाता माना गया है; लेकिन यदि वह खाता समृद्ध हो और अन्य खाते में पैसोंकी अत्यंत आवश्यकता हो तो उस खातेमें दान करना यही उत्तम पुण्यबंधका जनक बनता है / पिताजीके पाँव दु:खते न हों और सरमें बेहद दर्द होता हो तो उस समय प्रतिदिन पाँव दबाकर सो जानेकी भावनावाले पुत्रको चाहिए कि उस दिन सर दबाकर सोये / उसीमें उसकी