________________ सामान्य सूचनाएँ अब तो जो शेष खाते बचे हैं, वे केवल उन खातोंकी रकमोंके सूद पर ही निभते हों तो कि उन रकमोंको बिना उपाय बैंकमें जमा रखें / __इसमें भी तिथि-योजना वर्ष-वर्षकी यदि बनायी जाय-कायमी तिथि योजना न बनायी जाय तो- तन्निमित्त बडी बडी रकमोंको बैंकोंमें जमा रखनेका महापाप न हो पायें / प्रति वर्ष तिथियोजना बनाने का फायदा भी है, क्योंकि लगातार बढती रहती महँगाई ध्यानमें रखकर प्रतिवर्षकी तिथि योजनाका आँक बदल सकते हैं / कायमी तिथियोजनामें महँगाईके सामने, उसके पर प्राप्त होनेवाला सूद कम मिलनेसे संघ मुसीबतमें फँसता है / संक्षेपमें, अनिवार्य रूपसे जिस खातेकी जो रकम हो, उसीको बैंकमें जमा रखे, शेष सारी रकमका तत्तद् विषयोमें उपयोग कर देनेसे हिंसाका पाप कम हो जायेगा / उदारताके अभावमें देवद्रव्यको रकम, अन्य देरासरमें भेंट (दान) के रूप में न दें सकें तो लोनरूपमें भी दें / उन जिनालयोंकी प्रतिष्ठाकी आमदनी होने पर लोन भरपाई हो जाने पर तुरत दूसरे किसी जिनालयमें लोनके रूपमें दे दी जाय / इस प्रकार भी बैंकमें तो रखी ही न जाय / इस परसे यह बात समझ लें कि कोई भी श्रीमंत जैन, 10-20 लाख रूपयोंका ट्रस्ट बनाकर, उसके व्याजमेंसे-अपनी गैरहाजिरीमें भी भविष्यके धार्मिक कार्य चलते रहे, ऐसा करना वर्तमान परिस्थितिमें उचित नहीं है / 10-20 लाख रूपयोंका यदि सदुपयोग करना ही है तो तत्काल उपयोग किया जाय / अन्यथा बैंकमें जमा होनेवाले उन रूपयोंका उपयोग, तुरत मच्छीमारी आदिमें होने लगेगा / उससे महादोष कितना भारी उत्पन्न होगा कि उसके बदले में सूदकी रकमके सदुपयोगसे उत्पन्न लाभ मामूली बन जायेगा। यद्यपि यह बहुत शक्य नहीं फिर भी बता दूँ कि यदि अपने गाँवमें कोई बैंक अपना स्वतंत्र मकान बनाना चाहे तो उसमें देवद्रव्यकी रकम जमा की जाय / बैंक लोन दे , उसे किरायेके रूपमें पूरी भरपाई करनेके बाद, किरायेसे जो आमदनी हो, उसे देवद्रव्यके खातेमें जमा की जाय / - और यदि ऐसा मकान, उपाश्रयके लिए एकत्रित की गयी रकममेंसे बनवाया जाय तो उसमें संभव हो तो एक विभाग बैंकको किराये पर दे देनेसे, लोनकी रकम किराये से चूकता कर देने के बाद, जो किराया मिलता रहे, (बैंकोका किराया हमेशा ज्यादा मिलता हैं और नियमित होता है / ) उसका उपयोग, उपाश्रयके खर्च के लिए किया जाय / यद्यपि इसमें भी दोष है; लेकिन हिंसक कार्यों में देवद्रव्यकी रकम