________________ धार्मिक-वहीवट विचार बहुतसी मुक्तियोंवाला धर्म फुगावा बन जाता है / उससे धर्मक्षेत्रकी लम्बाई-चौडाई बढ़ती मालूम होगी; लेकिन धर्मकी आधारभूत गहराई द्रष्टिगोचर न होगी। फुगावा अर्थात् शरीर पर जमा हुआ वृद्धिंगत मेद / उससे केवल तराजूका वजन बढता है, लेकिन शक्तिमें बढावा नहीं होता / शक्ति रक्तसे बढ़ती है / प्रस्तुतमें इस बात को समझें / अल्प लेकिन विधि, जयणावाला शुद्धधर्म ही बडा धर्म है। ___ पौने लीटर पानीसे मिश्रित पाँव लीटर दूधवाले, एक लीटर सफेद प्रवाहीकी अपेक्षा, शुद्ध दूध के पाँव लीटर प्रवाहीमें ज्यादा शक्ति रहती है / ____ यदि दाता पूरी उदारता को काममें लाना न चाहता हो तो उसकी धनमूर्छा उतारनेके लिए उपदेशक लोग पूरी कोशिश करें / अविधि, अनादर, संघ उपर अतिशय दबाव आदि द्वारा आरंभित तथाकथित धर्मानुष्ठानोंमें कोई तेज-प्रभाव दीख नहीं पड़ता / आखिरमें वह अशुद्धि कहीं न कहीं अवरोधक बनती है और उद्वेग, अशान्ति या निष्फलताकी निमित्त बनती है / श्रमणलोग भी, अक्षम्य अविधिसे पूर्ण अनुष्ठान करते रहकर, प्रतिष्ठाकी भूखमेंसे उत्पन्न होनेवाले मोहका त्याग करना होगा / ऐसे अनुष्ठानोंकी आमदनीमें श्रमणलोग कोई शर्ते या अपना हकहिस्सा न रखें / शर्त रखनेवाले श्रमणोंकी निश्रामें इन अनुष्ठानोंका आयोजन श्रावकोंको नहि करना चाहिए / अनुष्ठानोंकी पूरी सफलता केवल श्रावकोंकी उदारतासे प्राप्त नहीं होती; उसके सामने श्रमणोंका अत्यंत उच्च नि:स्पृहतापूर्ण चरित्रबल भी जुड़ा चाहिए / हाँ, उसमें यदि व्याख्यानशक्ति शामिल हो तो, वह अनुष्ठान अत्यन्त यशस्वी बन पाता है / स्वामीवात्सल्यमें अभक्ष्य, अपेयत्याग, रात्रिभोजनत्याग आदि नियमोंका बराबर पालन होना चाहिए / छरी पालित संघमें संघपतियोंसे लेकर तमाम यात्रीलोगोंको छ'रीपालन उचित ढंगसे करना चाहिए / __इस प्रकार प्रत्येक अनुष्ठान पूरी विधियुक्त और जयणायुक्त-शास्त्रनिर्दिष्ट होना चाहिए / यदि उटपुंटांग ढंगसे, धनिकोंकी युगवादी रीतरसमों से धर्मानुष्ठान होते रहेंगे तो, नयी पीढी के लोग, ऐसे उटपटांग अनुष्ठानोंको ही 'सही' धर्मानुष्ठान मानकर, उन्हींकी परंपरा चलायेंगे / ऐसा न हो उसके लिए अशास्त्रीय अनुष्ठानोंके आयोजनोको, संपूर्णतया शास्त्रीय बनाने के लिए गीतार्थ गुरुओंका अधिकाधिक प्रयत्न होना चाहिये / यदि वैसा संभव न हो तो, स्वयं वह अनुष्ठानमेंसे अलग हो जाय /