________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण निश्राकृत खाता (12) स्वामीवात्सल्य, नवकारशी, पोसाती का भार आदिका निश्रा (आधार) लेकर जो रकम प्राप्त हो उसे इस खातेमें जमा की जाय / यहाँ बाकी सारी बातें कालकृत अनुसार समझी जायँ / उपधान, छ'री पालित संघ, स्वामीवात्सल्य, उजमना आदि विशिष्ट अनुष्ठानकी निश्रा लेकर दी जानेवाली रकम इस खातेमें जमा की जाय / इस रकमका उपयोग, दाताकी भावना के अनुसार ही, उसी कार्यमें किया जाय, अन्यत्र कहीं नहीं। यहाँ एक बातको प्रत्येक संघके व्यवस्थापकों-संचालनकोंको ध्यानमें रखनी होगी कि दाता जो अनुष्ठान कराना चाहता है, उसके खर्चकी पूरी रकम उन्हें देनी चाहिए / एक लाख रूपयोंका खर्च हो और पचास हजार रूपये ही दे / बाकी रकम की जिम्मेवारी संघके सर पर थोप दे / आधी रकममें अपना नाम उस अनुष्ठानके प्रणेताके रूपमें घोषित कराए., यह उचित नहीं है / यदि दाता शक्तिसंपन्न हो तो उसे पूरी रकम चूका देनी चाहिए / हाँ, यह शक्य है कि कम नकरा आदिसे अनुष्ठानके आयोजकका लाभ लिया हो तो उस रूपमें घोषणा कर ले सकता है / . इतना ही नहीं, लेकिन यदि छ'री पालित संघ निकालना चाहे तो अनुकंपा और जीवदया के लिए भी अलग रकमकी व्यवस्था करनी चाहिए / किसी भी धार्मिक अनुष्ठानके साथ, इन दो कार्यों को अवश्य करें / ऐसा होने पर अजैन भी जैनोंके धर्मकी भरपेट प्रशंसा-सराहना करेंगे / ऐसा होनेसे उनमें आगामी भवमें जैनधर्मकी प्राप्तिके बीजका निक्षेपण होगा / वर्तमान समयमें बी.सी.लोगोंके लिए सत्ता भुगतनेका समय आ पडा है, तब तो अठारहों वर्गोंकी अनुकंपाके आयोजन बारबार करना होगा / अन्यथा, धर्मानुष्ठानोंके ठाठमाटको देखकर वह वर्ग चौंक उठेगा / भयंकर शोरगुल मचायेगा / खतरनाक हमले करेगा / उनके दिल जीतनेका विचार श्रावक नहीं करेगा तो और कौन करेगा? . जिसमें स्त्री-पुरुष कई दिनों तक साथ साथ रहते हैं ऐसे उपधान या संघोंमें संचालक मर्यादापालनमें पूरे अनुशासन से काम ले / जिससे कोई अनिच्छनीय घटना घटित न हो। विधिका अपालन और सर्वत्र जयणा बिनाका धर्म, इसे धर्म नहीं कहते /