________________ धार्मिक-वहीवट विचार . साधु-साध्वीजी भगवंतोंके निवासीके लिए विशेषरूपसे यदि कोई स्थल. बनाया जाय तो वह 'आधाकर्मी' स्थल कहा जाता है / जिसमें साधु-साध्वी लोग निवास करें तो आधाकर्मादिका दोष लगता है / विहारके मार्गमें तो ऐसे आधाकर्मी उपाश्रयोंके निर्माण होते है। उन्हें अनिवार्य अपवादरूपमें समझें / श्रावक-श्राविकाएँ अपने सामायिक, पौषध आदि करनेके लिए, जिस भवन का निर्माण करे, उसमें विहार निमित्त आये अथवा चातुर्मासकी भावनावाले साधुसाध्वीजी संघकी संमतिसे निवास करें / इस पौषधशालाके लिए तख्ती आदि योजना द्वारा जो दान प्राप्त हुआ हो, उसका उपयोग पौषधशालामें किया जाय / यदि दानकी रकममें बढावा होता हो तो अन्य पौषधशालामें भी उपयोग किया जाय / पौषधशालाके निभाव आदिमें भी उपयोग किया जाय / सात क्षेत्र रूप साधारणमें भी किया जाय / उस पौषधशालाकी पाट, फोटो आदिको उस पौषधशालाके ही एक भागरूप समझकर, उसके निमित्त प्राप्त दान या चढावे की रकमके बढावे का उपयोग पौषधशालामें किया जाय। / श्रावक-श्राविकाएँ, अपनी सामायिक, पौषधादि धार्मिक, प्रवृत्तियोंके लिए, जिस मकानका निर्माण करे, उसे 'पौषधशाला' कहते हैं / सामान्य रूपसे वह स्थान देरासरके समीप (उप) होता है / पौषधशालाको उपाश्रय भी कहा जाता है / श्रावकोंकी अनुज्ञा लेकर ऐसे स्थानोंमें संसारत्यागी विहार करते करते निवास करते हैं / विनंती करने पर, अनुकूलता हो तो चातुर्मास भी करते हैं / ___ इस स्थानको खास साधु-साध्वीजियोंके लिए ही बनाया जाय तो वह गोचरीकी तरह आधाकर्मी बनकर. वह स्थान, उनके उतरने के लिए बिलकुल अयोग्य बन जाय / कहीं देवद्रव्य लगाकर उपाश्रय बनाया जाता है / यह बहुत अनिच्छनीय है / पुण्यशाली मुनिलोग उपदेश देकर उस उपाश्रयके देवद्रव्यको रकम बजारू सूदके साथ वापस जमा करा देनी चाहिए / वे उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते / ऐसे उपाश्रयमें यदि मुनियोंको निवास करना ही पडे तो उतने समयका किराया - जाहिरातके साथ - उस संघके देवद्रव्य खातेमें जमा कराना चाहिए / यदि वह संघ, उपाश्रय निमित्त उपयोगमें लाये गये देवद्रव्यकी, रकमको जमा न करवा पाये तो वह मुनि अन्य सुखी-संपन्न लोंगो से अपील करें / तख्तीयोजना, फोटो-योजना आदि उचित मार्गदर्शन देकर उपाश्रयको देवद्रव्यसे मुक्त करना चाहिए।