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________________ 33 चौदह क्षेत्रोंका विवरण भारत की माता इतनी कठोर नहीं बन पाती / हाँ, नौकरी पर जाते समय, बच्चे-बच्चीको पालना घर' (घोडियाघर)में या नौकरानियों के पास तो जरूर छोड जाती है। भारतीय प्रजाकी माँ और जिनशासनकी श्राविका स्वरूप माँमें और ज्यादा अन्तर है। जिनशासन की श्राविका माँ संतानको गोदमें उठाकर सुबह जिनालय दर्शनार्थ लेकर जाती है / दोपहर साध्वीजियाँ से मिलती है / बच्चेका जीवनको धर्मके संस्कारोंसे समृद्ध-संपन्न बनाने के काम बचपन से ही करती है / माँ, (बाप) मित्र और शिक्षक पर तो हमारे चारित्रगठनका मुख्य आधार रहा पवनंजयको, मित्र प्रहसितने गलत निर्णय करनेसे रोका था / पिता चणकने, पुत्र चाणक्यको राजा होनेसे रोकनेके लिए (राजेश्वरी अर्थात् नरकेश्वरी ऐसी समझसे) राजलक्ष्मी देनेवाले दाँतको, लोहके साधनसे घिस डाला था। हिटलरके वामन शिक्षकने, हिटलरके दिमागमें यहूदियोंके संहारक बननेका विषबीज बचपनसे ही बो दिया था / इसी कारण हिटलरने अपने आयुष्यकालमें 60 लाख यहूदियोंकी कत्ल करवा दी थी। क्षीरकदंबक पाठकको पता चला कि अपना पुत्र-जिसका वह स्वयं शिक्षक भी है-नरकगतिमें जानेवाला है / उसे संसारके प्रति वैराग्यभाव उत्पन्न हुआ और उसने उसी समय संन्यास ले लिया / पुत्रको शराब पीनेका या मांसाहार करनेका सिखानेवाली माँ भी कई हैं; लेकिन ऐसी माँको माँ नहीं कही जाती / फिर श्राविका तो कैसे करें ? .. पिता-श्रावक के बारेमें भी यही समझे / / पुत्रने देरासर जानेका- थोडा दगा होनेसे छोड दिया / पिता चुस्त श्रावक थे। उन्हें आघात लगा / मृत्युशय्या पर पडा / अन्तिम दिवस ! अन्तिम घंटा ! पुत्रका हृदयपरिवर्तन हुआ / पिताका मोत मधुर बन गया / उद्धार हो गया / ___ अजैनोंमें योगराजका प्रसंग आता है / पुत्रोंकी गलतियोंके कारण, पिता ... योगराजको चिता पर सोकर अग्निस्नान करना पड़ा / चाँपराजवाले लुटेरेका प्रसंग याद आ रहा है / वह छोटा था तब उसकी माता - के साथ, उसके पिताने दोपहरके समय कामुकतापूर्ण छेडछाड की थी / माताने था.व.-३
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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