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________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण है, उसका पाठ सर्वप्रथम तो माता-श्राविका ही तमाम संतोनोंको पढाती हैं / उपरान्त, वही अपनी संतोनोंको आवश्यक सूत्रपाठ का ज्ञान कराती है (पूर्वकालमें) / वही साधु और साध्वी नामक दो खातोंकी उत्तम सेवा-शुश्रूषादि करती है / अपनी संतानोंको वही साधु या साध्वी स्वरूप दिलाती है / घरमें जो पुरुषगण है - पति या बच्चे - उन्हें, वही श्रावक या श्राविका बनाती है / कार्येषु मन्त्री' उस उक्ति अनुसार श्रावककी सही मार्गदर्शिका भी श्राविका ही जिनदास सेठकी आर्थिक स्थिति कमजोर हुई तब, उन्हें चोरी ही करनी हो तो, अमुक सेठके मालसामानकी चोरी करने जाना-चोरीके मालको उसके मालिक के घर ही अमानतके रूपमें रखना आदि तमाम काम कुंजदेवी श्राविकाने ही किया न था ? कितनी भारी सफलता उसमें प्राप्त की थी? माया कपटसे जिस श्रावक-कन्याके साथ बौद्धधर्मी युवान शादी कर बैठा, उसके समुचे परिवारको श्रावक बनानेकी कठिन कार्यवाही उस श्राविकावधूने ही पार उतारी थी। संताने स्वच्छंदी बनीं और चलचित्रोंकी आदी बनी तो अठुमकी सजा भुगतकर माता-श्राविकाने उन्हें उन्मार्गगामी होनेसे बचा ली थीं / ... मेडकोंकी कत्ल करके डाक्टर बनने चले पुत्रको गरीब श्राविका-माताने . चुनौतीके साथ कहा "आटा पीसकर कडी महेनत कर बेटा ! तुझे पढाया है / खिलापीलाकर बड़ा किया है, अब भी तेरी माताके बाहुमें बल है और हृदयमें हिंमत है कि आजीवन तुझे खिलाऊंगी, लेकिन डाक्टरके हिंसाजनित व्यवसायमें तो नहीं ही जाने दूंगी'' पुत्रको इस चुनौतीके सामने झुकना ही पडा। . अरे, जिनशासन की महाश्राविका नागिलाको हमे कैसे भलें ? जिसने मनसे पतित हुए पति-साधुको घरमें प्रवेश करनेसे रोका था / उपदेश देकर गाँवकी सीमासे ही वापस लौटाकर भूतपूर्व पतिको जिनशासनके अभूतपूर्व मुनिवरमें परिवर्तित किया ! ___ जिनशासनको स्वीकृत श्राविकाने रत्रकंकण जैसे युगल स्वरूपमें अवतरित दो पुत्रोंको तालाबमें डूब जानेसे एक साथ गँवाये तो भी आँखोंमेंसे एक बूंद न उमड़ी / ललाट पर दो अंगुलियाँ रखकर केवल इतना ही कहकर मनके साथ
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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