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________________ 30 धार्मिक-वहीवट विचार . इस रकमका उपयोग श्रावक-श्राविकाओंकी भक्तिमें,उनकी विषम परिस्थितिमें सहायक बननेमें, उन्हें धर्ममें द्रढीभूत करनेमें किया जाय / ये अन्तिम दो खाते होने के कारण, पूर्वोक्त नियमानुसार, उपरके पाँचों क्षेत्रोंमें इन क्षेत्रोंकी रकमका उपयोग किया जाय / लेकिन दीनदुःखियोंकी अनुकंपामें या अबोल प्राणियोंकी जीवदयामें इस रकमका उपयोग किया नहीं जाता है / सामान्यतः जिस खातेका द्रव्य हो, उस द्रव्यको उपयोग उसी खातेके कामों में किया जाय वो उचित है, यहाँ, कभी आवश्यकता पड़ने पर उपरके खातेके कार्योंके लिए, नीचेकी खातेकी रकमका उपयोग (नीचे जरूरत न हो तब) किया जाय; लेकिन उपरकी रकमका उपयोग नीचेके लिए कभी न किया जाय / यद्यपि नवकारशी, पुष्प-चूनरी आदिके चढावे करनेके बाद भोजनसमारंभमें या आयंबील खातेमें सीरा-रोटे आदि शेष बचा हो तो, उसका उपयोग गरीबोंके लिए किया जाय / उसमें कोई दोष नहीं होता। इस क्षेत्रकी रकमका उपयोग पौषधशाला, आयंबीलखाता एवं पाठशालामें किया जा सकता है - क्योंकि इन तीन क्षेत्रोंमें श्रावक-श्राविकाओंकी, धर्मदान द्वारा भक्ति की जाती है / सात क्षेत्रोमें महत्त्वपूर्ण क्षेत्र श्राविका जैनधर्ममें सात क्षेत्ररूपी जैनधर्मकी संपत्ति बतायी गयी है / उनके नाम निम्नानुसार हैं : (1) जिनमूर्ति (2) जिनमंदिर (3) जिनागम (4) साधु (5) साध्वी (6) श्रावक (7) श्राविका. अपेक्षानुसार प्रत्येक उपर-उपरके क्षेत्र बढे-चढे हैं / परन्तु एक अपेक्षागत अत्यंत गौरवास्पद क्षेत्र है श्राविकाक्षेत्र, जो अन्तिमक्षेत्र है / यहाँ जिसे, श्राविका' के रूपमें पेश करना चाहता हूँ, वह या तो अनुपमा है, या मयणा है, या आर्यरक्षित, चाँगो, संप्रति आदिकी माता है / ऐसी जो श्राविका हो, उसके पर सातों क्षेत्रोंकी रखवालीका उत्तरदायित्व है / देखिए, जिनमूर्ति और जिनमंदिरके जो तीर्थंकरदेव है, उनकी जन्मदात्री त्रिशला वामा, शिवा या मरुदेवा आदि श्रेष्ठ श्राविकाएँ ही हैं न ! (उनके सिवा तमाम जिनेश्वरोंका इस भूलोक पर आगमन ही असंभवित होता / ) तीसरा जो जिनागम स्वरूप सम्यग्ज्ञान है, उसका सार जो मन्त्राधिराज नवकार
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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