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________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण ज्ञान खातेकी रकमसे वेतन पानेवाले अजैन पंडितोंके पास एक मिनटका भी दुर्व्यय करनेमें, उन साधु-साध्वियोंको रकमके दुरूपयोग करने का दोष लगता है / अत एव महोत्सवादिके कारणवश बारबार पंडितोंको छुट्टी देना उचित नहीं है ज्ञानखातेकी रकम, स्कूल, कालिज, उसकी किताबें, नोटबुकें आदिमें खर्ची न जाय / क्योंकि वह सम्यग्ज्ञान नहीं है / आजका शिक्षण तो महामिथ्यात्वका पोषक बन पड़ा है। ज्ञानखातेके रकमकी आलमारियोंका उपयोग साधुलोग किताबें रखनेके लिए कर सकते हैं, लेकिन उनमें उपधि आदि रख नहीं सकते / ज्ञानखातेमें प्राप्त व्यक्तिगत भेंटकी रकममें से जैनपंडित को भी वेतन-पुरस्कार दिया जाय / पाठशाला के बच्चोंके अध्ययनके लिए किताबें खरीदी जा सकती her . . 'साधु-साध्वी (4 + 5) सात क्षेत्रोंके अंतर्गत इन दो खातोंको परस्पर संमिलित मानकर एक समझ लें / इस खातेमें आनेवाली वस्तुएँ गुरुद्रव्य मानी जाती हैं / - गुरुद्रव्यके तीन प्रकार हैं / जिन चीजोंका (गुरुद्रव्य) कपडे, पातरे, गोचरीपानी आदि वस्तु साधु-साध्वी अपनी अधिकारकी समझ भोगने के लिए उपयोग करते हैं, उन्हें भोगार्ह गुरुद्रव्य कहा जाता है / जिन द्रव्यों-चीजोंको गुरुचरणोंमें पूजनके रूपमें रखी जाये, गहूंलीमें रखी जायें (यदि परंपरागत पूजारी का लागा हो तो उसे दिया जाय) मुनियोको वहोरानेकी कम्बल आदिका चढावा किया जाय, ऐसा धन, जिसे साधु-साध्वियाँ अपनी मालिकीका समझकर उपभोगमें नहीं लेते, उसे पूजार्ह गुरुद्रव्य कहा जाता है / . यद्यपि साधु-साध्वियोंको धनादिकी आवश्यकता नहीं होती, अत: उन्हें धन समर्पित किया न जाय, जिससे वह गुरुद्रव्य बने, ऐसा प्रश्न ही नहीं ऊठता / परन्तु विक्रम आदि राजाओंने गुरुको धन समर्पित किया है और श्राद्धजीत कल्प (गाथा ६८)में ऐसे धनादिका उपभोग करनेवाले व्यक्तिको होनेवाले प्रायश्चित्तका जिक्र करते हुए, उस धनादिका 'गुरुद्रव्य में समावेश किया है, अत: उस धनादिको पूजार्ह * . गुरुद्रव्यके रूपमें निःसंकोच कहा जा सकता है / ऐसे द्रव्यका साक्षात् उपभोग गुरुदेव नहीं करते, अत: उसे भोगार्ह गुरुद्रव्य कहा नहीं जा सकता /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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