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________________ धार्मिक-वहीवट विचार हैं / उनके लिए शील, तप, आदि तो कष्टदायक बन जायें / तो उनके लिए उनका आत्महित करनेवाले दानधर्मकी व्यवस्था क्यों रखी न जाय / जिससे उनकी संभवित दुर्गतिकी संभवितता कम हो सके / श्रीमंतोको दान-धर्म सेवन लाभ प्राप्त हो और मंदिरोंके जीर्णोद्धारादिके लिए आवश्यक करोडों रूपयोंका प्रवाह अनवरत बहता रहे-इन दो लाभोंको नजरके सामने रखते हुए, मध्यम या गरीब वर्गके जैनोंको, उछामनीके धनके माध्यमका कदापि विरोध नहीं करना चाहिए। ___ अजैन मंदिरोंकी अपेक्षा, जैन मंदिरोंकी सुचारु संचालन आदिके मूलमें देवद्रव्यकी सख्त व्यवस्था ही मूल कारण है / देलवाडाके जिनमंदिरोंको लगातार दो घंटो तक गहराईसे पं. नहेरुने देखकर मुलाकाती-पुस्तिकामें तद्विषयक प्रशस्ति भी वे लिख न पाये; क्योंकि शब्दकोषका कोई भी उत्कृष्ट शब्द, प्रशिस्तका पूरा खयाल दे सके ऐसा न था / अन्तमें कोरी जगह छोडकर अपने हस्ताक्षर कर उन्होंने. विजिटबुक बंध करवा दी थी। ट्रस्टियोंकी मोहदशा के कारण, ट्रस्टों में जमा देवद्रव्यकी लाखों रूपयोंकी रकम देखकर, वर्तमानकालीन बुद्धिवादी वर्ग उसके बारेमें अंटसंट अभिप्राय दे रहा है / वास्तवमें ट्रस्टीलोगों को इस मोहदशा का त्याग कर सारी संपत्तिको जहां-जहां आवश्यकता हो, वहाँ देते रहना चाहिए / देवद्रव्यके दस अरब रूपये भी कम पड़े इतने सारे जीर्णोद्धारादिके काम समुचे भारतमें चल रहे हैं। ___ दाताने जिस हेतु से रकमका दान किया हो, उससे अलग हेतु के लिए दानकी रकमका उपयोग किया नहीं जा सकता, ऐसा चेरिटी कमिशनरका कानून भी ' कस्तूरबानिधिमें जमा इक्यावन लाख रूपयोंका उपयोग बंगालमें पडे भयानक सूखे के समय मानवोंको बचानेके लिए किया जाय, ऐसा आग्रह गांधीजीको किया गया, तब गांधीजीने उसका साफ इन्कार इसी कारणसे किया था / अलबत्त, अपनी प्रचंड भाग्ये के कारण, सुखाग्रस्त लोंगो के लिए एकबडा अलग निधिका निर्माण, उन्होंने चंद दिनोमें कर दिया था / जिनागम (3) ___ पहले आगम आदि ग्रन्थ कण्ठस्थ होते थे / परंपरया सूत्रोंके पाठ चलते रहते / साधुओंको लिखनेकी मना थी / लेकिन विषमकालके कारण आगमों
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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