________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण मंदिरोके निमित्त देवद्रव्य, यह सामान्यतः सर्वोत्कृष्ट खाता है, क्योंकि उस रकममेंसे जीर्णोद्धारादि होने पर, उसका आयुष्य बढ जाता है / परमात्मभक्तिसे अगणित गणोंका विकास होता है / हेवान इन्सान बनता है / इन्सान भगवान बनता है।किसी भी धर्मकी संस्कृति, उसके मंदिरोके आसपास घिरी रहती है / बालकक्षाके जीवोंके विकास के लिए परमात्माकी मूर्तिका आलंबन अत्यन्त जरूरी है / यदि मूर्ति है, तो संस्कृति है / यदि संस्कृति है, तो प्रजा है / . यदि प्रजा है , तो देश है / आठ कर्मों में सबसे ज्यादा खतरनाक मोहनीय कर्मका खात्मा देवगुरुकी भक्तिसे ही होता है / उस कर्म के कमजोर होने पर शेष सभी कर्म कमजोर होते हैं / इस प्रकार कर्मक्षय होने पर, जीव शिव बन पाता है / ऐसे असंख्य लाभोंके कारण, जिनमंदिर अत्यन्त आवश्यक वस्तु बन जाती है। इसी लिए अधिकतर मंदिर निर्माण और जीर्णोद्धार कार्य अनवरत चलते रहते हैं / अरबों रूपयोंके प्राचीन मंदिरोंकी मरामत बारबार करते रहना पडे, उसके लिए जैन संघको करोडों रूपयोंकी आवश्यकता बनी रहती है / जब तक देवद्रव्यकी व्यवस्था अत्यन्त सख्तीसे अनुशासनपूर्वक बनी रहेगी तब तक जिनमंदिरोंके लिए प्रतिवर्ष करोडों रूपयोंकी आमदनी सुलभ बनी रहेगी। - ज्ञानी पुरूषोंने देवद्रव्यकी व्यवस्थाको, इसी कारण 'अत्यन्त सुद्रढ बनाकर, एक पैसेके भक्षण या दुरूपयोगको अति भयानक कर्मोंके बन्धनकै रूपमें वर्णित कर, समग्र जैन संघ उपर -जीवमात्र उपर- असीम उपकार किया है / यदि देवसंबंधित उछामनियोंको धनके बजाय नवकार, सामायिक, मौन आदिके माध्यमसे बुलाने की छुट्टी दे दी होती तो देवद्रव्यखातेमें तेज रफ्तार से बहता संपत्तिका प्रवाह मंदगतिवाला हो जाता / / . बेशक धनके माध्यमकी उछामनी होनेके कारण मध्यम या गरीब वर्गके आदमी, विशेष लाभ उठा नहीं पाते, परन्तु वे उसकी अनुमोदना कर लाभ पा सकते हैं / शील, तप और भावनामक उत्तरोत्तर श्रेष्ठतर तीन धर्मोका साक्षात् पालन-सेवन कर के भी अधिकतम स्वहित साध सकते हैं। धनदान नामक एक ही धर्म है, जिसका सेवन केवल श्रीमंत कर सकते