________________ 20 धार्मिक-वहीवट विचार (3) कल्पित देवद्रव्यकी रकम, जिनप्रतिमा और जिनमंदिरविषयक तमाम कार्य, केसरादि लाना, अजैन गुरखा, पूजारीको वेतन देना, दियाबत्तीका खर्च निकालना आदि उपयोगमें ली जा सकती है / हाँ, इस खातेकी रकम, जीर्णोद्धार, नूतन जिनमंदिर के निर्माणमें उपयोगमें ली जा सकती है ।हालके संचालकके अंतर्गत देवद्रव्यके ऐसे तीन प्रकार निश्चित नहीं किये गये हैं / देवद्रव्यकी एक ही थैली रखी जाती है / यह विषय शास्त्रसंगत है या नहीं, यह निश्चित करना गीतार्थ आचार्य भगवंतोका काम है / हमारे स्वर्गीय तरणतारणहार गुरुदेव श्रीमद् महान गीतार्थ आचार्य भगवंत पूज्यपादप्रेमसूरीश्वरजी म.सा.इसे संगत मानते न थे। संबोधप्रकरण' (ले. पू. हरिभद्र सूरीश्वरजी : रचनासमय छठवी शताब्दी) में इस तीन प्रकारोंका सविस्तर विवरण दिया गया है / हाल जो द्रव्य देवकुं साधारणं कहा जाता है, उसका भी यथायोग्य पूजा या कल्पित देवद्रव्यमें समावेश हुआ है, ऐसा समझें / जिनमंदिररक्षा या तीर्थरक्षाके लिए अदालतोमें मुकद्दमें दर्ज कराना। साहित्यप्रचार करना, कार्यालयके लिए मकानकी व्यवस्था करना, चौकीदारके रूपमें गुरखोंको नियुक्त करना आदि जो काम उचित मालूम हों, उनके लिए देवद्रव्यकी रकमका उपयोग करें / इतना अवश्य ध्यानमें रखें कि यह रकम केवल अजैन वकील, गुरखा आदिको ही दी जाय / उपरान्त, उसका अमर्याद-निरंकुश उपयोग होने न पाये / श्रावकके स्वयंके उपभोगमें न आ पाये उसकी सावधानी रखें / भूतकालमें जो श्रीमंत, देरासरका निर्माण करते, वे देरासरकी कायमी निर्वाहव्यवस्था भी शक्य करते थे / इस प्रकार जिनालय के निर्वाह के लिए दिया गया द्रव्य, संकल्पित देवद्रव्य कहा जाता था। जिनपूजादि कार्यों में उसके उपयोगका विरोध करनेवाले भी, इसी प्रकारका 'जिनभक्ति साधारण' नामसे भंडार तो देरासरोंमें स्थापित करते ही है / यह रकम परद्रव्य अथवा कल्पित एसा देवद्रव्य ही है / उसके द्वारा जैन प्रभुभक्ति आदि करें, उसमें उन्हें कोई आपत्ति नहीं / (आश्चर्यकी बात यह है कि इतना होने पर भी वे स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनेका ऐसा एकान्तिक आग्रह रखते हैं कि परद्रव्यादिसे जिनपूजा हो ही नहीं सकती ! यह वदतो-व्याघात नहीं हैं ?) हाँ, यदि कोई स्वद्रव्य से पूजादि करे तो उसे अपनी धनमूर्छा उतारनेका बड़ा अलभ्य अवसर प्राप्त हो, यह निश्चित है / वैसा मौका, शक्ति-सामर्थ्य होने पर भी स्वद्रव्यसे पूजा न करनेवाले को प्राप्त नहीं होता / परन्तु उससे ऐसा न कहा जाय कि शक्तिमान व्यक्ति परद्रव्यादि से पूजा करे तो उसका अहित ही हो /