________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण शिखरजी आदि संघ, स्वामी वात्सल्य, आयंबिल खातोंका निर्माण आदिमें तत्तद् धर्माचरण हो सकता है तो स्वद्रव्यसे ही जिनपूजाका आग्रह आत्यन्तिक रूपसे क्यों किया जाय?' निश्चयनय' तो ऐसे किसी प्रकारके भेद को ध्यानमें न लेकर, धर्मात्मा के ह्यदयमें प्रफुल्लित भावको ही कार्यसाधक मानता है / (सविशेष जानकारीके लिए इस ग्रन्थके परिशिष्ट-२' को देख लें / ) जिनमंदिरको भेटमें प्राप्त खेत, मकान, मकानका किराया आदिकी रकम, सूद-कर्जकी रकम आदि, केसरपूजादि अष्टप्रकारी पूजाके चढावेकी रकम, प्रतिष्ठाअंजनशलाकादिके चढावेकी रकम, रथयात्राके वरघोडेकी विविध चढावेकी रकम स्वपकी बोली, उपधानकी माल, संघमाल आदिके उछामनियाँ, ऊतरे हुए वरख चावल, बादाम आदिकी बिक्रीसे प्राप्त रकम, पंचकल्याणकोंके उत्सवोंके चढावेकी रकम आदि देवद्रव्य कहा जाता है / यहाँ इतना सविशेष समझ लें, रथयात्राके वरघोडेके साथ हाथी, घोडा, सांबेला आदिकी उछामनीकी रकम (उसमेंसे सांबेला का खर्च निपटाया जा सकता है / ) देवद्रव्यके खातेमें जमा हो, लेकिन उसमें जो विशेष कनकश्री बनना, 45 आगमकी गाड़ी रखना आदि वस्तुएँ हों तो उनकी उछामनीकी रकम क्रमशः श्रावक खातेमें या ज्ञानखातेमें जमा हो / , देवद्रव्य के तीन प्रकार हैं / पूजा देवद्रव्य : अष्ट प्रकारकी पूजाकी वार्षिक उछामनीकी रकम अथवा पूजा निमित्त भेंटमें आयी रकम या पूजाके पदार्थ / निर्माल्य देवद्रव्य : वरख आदि उतारे पदार्थ एवं चावल, फल, नैवेद्य आदिकी बिक्रीसे प्राप्त रकम / __कल्पित देवद्रव्य : निभावके लिए कल्पित कायमी निधि स्वरूप रकम तथा स्वप्नका चढावा, उपधान के मालकी, संघमालकी, वरघोडेकी उछामनी आदिकी रकम / . (1) पूजा देवद्रव्य से परमात्माकी तमाम प्रकारकी पूजा हो सकती है / आँगी, आभूषण आदि प्रभुनिमित्त सभी कार्यों में उपयोग किया जाय / (2) निर्माल्य देवद्रव्यकी रकम, प्रभुजीके अंगके आभूषण, चक्षु, टीका आदिके उपयोगमें ली जा सकती है / जीर्णोद्धार एवं नूतन मंदिर निर्माणकार्यमें उपयोग किया जाय / प्रभुजीकी अंगपूजामें (पूजा देवद्रव्यकी तरह) उपयोगमें न ली जाय / जहाँ पूजाके द्रव्यसे या कल्पित देवद्रव्यसे निर्वाह न हो सकता हो; वहाँ अक्षतादि निर्माल्य द्रव्यसे भी पूजा हो सकती है /