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________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण (चौदह क्षेत्रोंका विवरण) (2) साधारण खाता शुभ (सर्वसाधारण) खाता (7 क्षेत्र) (14 क्षेत्र) 1. जिनप्रतिमा 8. पौषधशाला (उपाश्रय) 2. जिनमन्दिर 9. पाठशाला 3. जिनागम 10. आयंलिब खाता 4. साधु 11. निश्राकृत खाता 5. साध्वी . 12. कालकृत खाता 6. श्रावक 13. अनुकंपा खाता 7. श्राविका 14. जीवदया खाता जिनप्रतिमा और जिनमंदिर (1 + 2) .. जिनप्रतिमाके निमित्त जो भी धनागम हो उसे देवद्रव्य कहते हैं / उसका उपयोग जिनप्रतिमाओंके उभारमें किया जाय ।जिस जिनबिम्ब अंजनशलाका करनी हो, उस जिनबिम्बके उभारनेसे उछामनी हो की उस रकममें से नयी जिनप्रतिमाओंका उभार किया जाय / आँगी, मुकुट आदि बनाया जा सके / प्रतिमाओंका लेप किया जाय / चक्षु, टीका आदि लगाया जा सके / . जिनमंदिरमें या उसके बाहर कहीं भी परमात्माके भक्ति को निमित्त बनाकर जो भेट या प्रतिष्ठा, अंजनशलाका, केसरादि पूजा, आरती, रथयात्राकी रथके लिए तथा स्वप्नोंकी उछामनी, उपधानकी माल, संघमाल आदिकी उछामनी आदिका जो चढावा हो, वह सारा देवद्रव्य कहा जाय / इस रकमका उपयोग (1) जिनमंदिरोंके जीर्णोद्धार में एवं नूतन जिनमंदिरों के निर्माण में तथा जिनमंदिर के उपकरण, केसर-चंदनादि पूजन-सामग्री, पूजारीका वेतन, जिनमंदिरका संचालन आदि जिनभक्तिके सर्व कार्योंमें किया जाय / लेकिन शक्तिसंपन्न आत्माओंको धनम का दोषनिवारण करनेके लिए, स्वद्रव्यसे इस लाभप्राप्तिका ध्येय निश्चित रूपसे रखना चाहिए / (2) जिनालय या जिनप्रतिमाकी सुरक्षादिके लिए अदालती कार्यवाही करनेमें वकील (अजैन) आदिको फिस देना आदिमें हो सके / गुरखा आदि पहरेगीरके लिए किया जाय /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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