________________ धार्मिक द्रव्यके संचालन करनेकी योग्यता शिष्य उत्तराधिकारी, उनकी अनुपस्थितिमें लवाद बनकर बैठ जाय, तब उसका जीवन यदि सुचारु न हो तो, उस नए लवादका होनेका संभव है / अत: संत, मुनि, महात्मा लोग अपनी लवादी किसी भी ट्रस्टमें न रखे, वो हि योग्य है / अन्ततः तो सब कुछ भवितव्यताके अनुसार ही होनेवाला है, इस बातको कोई भूल न जाय / यद्यपि प्रत्यक्ष रूपमें तो ट्रस्टके मालिककी तरह ट्रस्टीलोगोंका आचरण होता है, लेकिन सही मालिक तो चेरिटी कमिशनर ही बन बैठा है, क्योंकि कई बातों-कार्योंके लिए उनकी अनुमति अनिवार्य होती है / जबकि वास्तव में तो ट्रस्टके संचालनके विषयमें गीतार्थ जैनाचार्यसे ही मार्गदर्शन लेना चाहिए / वे शास्त्रनीतिको नजरमें स्खकर ही उत्तर देंगे / जैनाचार्यके साथ संबंध हो, तब तीर्थंकर-देवके साथ संबंध जुडता है और चेरिटी कमिशनरके साथ संबंध जुड़े तो वेटिकन प्रदेशके ईसाई धर्मगुरु पोपके साथ संबंध जुड़ा माना जाता है / चेरिटी कमिशनरके विभागके कानून देशी-विदेशी गोरे लोगों द्वारा किये गये हैं और गोरे लोगोंके धर्मगुरु पोप हैं / - हाय ! कैसी कमनसीबी है कि आज जैनाचार्य उपेक्षित बन बैठे हैं / व्यवस्थित-आयोजनबद्ध तरिकोंसे उनकी सत्ताकी कटौती की गयी है / जैनधर्मके अनुयायीओंका यह बडा अध:पतन है कि उनका संबंध : तारक-उद्धारक तीर्थंकर देवके बदले पोपके साथ जुड़ा हुआ है / ट्रस्टीलोग ट्रस्टकी संपत्तिके स्वयं मालिक हों, उस प्रकार संचालन करते हैं / उन्हें संपत्ति पर ऐसी खतरनाक ममता रहती है कि उचित अवसरों पर, उचित स्थानोंके लिए रकमोंका सदुपयोग कर नहीं पाते / रकमके एकत्रीकरणजमावृद्धिके कई इहलौकिक एवं पारलौकिक नुकसान प्रत्यक्ष होने पर भी, अपने घरकी संपत्तिकी तरह, इतनी ही मूर्छा ट्रस्टकी संपत्ति पर भी रखते हैं / बैंकोमें जमा होनेवाली रकमोंका उपयोग घोर घातक कार्योमें होता है, यह जानते हुए भी, वे ट्रस्टी, संपत्ति के मोहसे मुक्त नहीं हो पाते / एक समय आयेगा कि भारत सरकार, एक ही कानूनके आधार पर सारी संपत्ति बटोरकर बैठ जायेगी / उसके 'बान्ड' देकर सारी मिलकत को ऐंठकर जायेगी / उस समय वे सभी ट्रस्टीलोग, कितने सारे पापोंका सहभागी होंगे ! यदि कोई आदमी धार्मिक ट्रस्टका संविधानका गठन करना चाहता हो तो, उसे तीन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए : (1) वह संविधान शास्त्र, नीतिसे अबाधित हो / (इसके लिए वे गीतार्थ गुरुका मार्गदर्शन