________________ परिशिष्ट-५ 285 पर पश्चात्ताप, सम्यग्दर्शनकी निर्मलता आदि गुणोंकी प्राप्तिका प्रतिषेध किया जा नहीं सकता / (धा.वही.विचार (गुजराती) पृ. 169, 196, 197, 218) (2) परद्रव्यसे जिनपूजादिधर्म _ 'परद्रव्यसे पूजा हो सके' विषयक शास्त्रपाठ (1) संघ द्वारा बुलायी अष्टप्रकारी पूजाके बारहमासी चढ़ावेके केसर आदि पदार्थ, पूजा करनेवाले गरीब आदि लोगोंके लिए परद्रव्य हैं / वे उस द्रव्यसे जिनपूजादि करते हैं / यदि परद्रव्यसे पूजादि हो ही नहीं सकती, तो ऐसी व्यवस्थाका विधान क्यों किया होगा ? (कई जैन लोग, उस पदार्थके बदलेमें उतनी रकम भंडारमें. रखते नहीं / अतः उस रूपमें वह स्वद्रव्य बनता नहीं / ) (2) पूजाकी सामग्री रहित तमाम गरीब या अमीर लोग पूजा कर सके इसलिए आवश्यक धन प्राप्त करनेके लिए, श्रीपालनगर तथा लालबागमें जिनभक्ति साधारण भंडार रखा गया हैं / इस भंडारके केसर आदि द्वारा पूजा करनेवाले परद्रव्यसे क्या पूजा नहीं करते ? (वे जिस गरीब श्रावकको फूल गूंथनेका पाठ देते है उस विषयकी विचारणा धा. वह. विचार पृ. 193 पर है / ) (3) पूजकके लिए ज्ञानद्रव्य यह परद्रव्य है / उससे जिनपूजा हो सके ऐसा ज्ञानद्रव्यं देवपूजायां प्रसादादौयोपयोगी / ' ऐसे सेन प्रश्नके पाठसे सिद्ध होता है / (धा. वही. विचार पृ. 205) .. ____परद्रव्यसे यदि जिनपूजारूप धर्म न होता हो तो परद्रव्यसे भी कोई धर्म न हो सके, तो फिर संघ और उपधान आदिमें या आयंबिल विभाग, स्वामिवात्सल्यमें कोई जैन जा नहीं पायेगा / क्योंकि वे सभी धर्मविभाग परद्रव्यके हैं अथवा उन्हें अपने भोजनादिके बदलेमें उतने रूपये जमा कर देने होंगे। क्या ऐसी कोई व्यवस्था विपक्षमें है / (4) उपरान्त, द्रोणक नामक अपने नौकर के पास, चार मुनियोंने मिष्टान्न आदि (द्रोणक के लिए परद्रव्य बने) वहोराये / तो उससे द्रोणक राजपुत्र बन गया ऐसा मूलशुद्धि प्रकरणमें बताया है / (धा.वही.विचार पृ. 209) (3) देवद्रव्यसे जिनपूजा हो, उसका शास्त्रपाठ (1) दर्शनशुद्धि, टीका, द्रव्यसप्ततिका, वसुदेवहिंडी, विचार समीक्षा,