________________ 284 धार्मिक-वहीवट विचार यह प्रायश्चित्त स्पष्ट रूपसे बताता है कि गुरुद्रव्य, यह वैयावच्च विभागका द्रव्य है / अगर वह देवद्रव्य विभागका द्रव्य होता तो गुरु, उस चोरी हुई रकमके अनुपातमें वैद्यादिको वस्त्रादिदान करनेके लिए न कहते, लेकिन देरासरके देवद्रव्य-विभागमें जमा करवानेके लिए आदेश देते / उपरान्त, पू. सिद्धसूरीजी(वापजी) महाराज साहबने गुरुद्रव्यको गुरुवैयावच्चमें उपयोगमें लाया जाय, ऐसा सूचित किया है / .. अन्तमें इतनी बात अवश्य वताऊँगा कि शास्त्रपाठोंकी तो समीक्षा होनी ही चाहिए / शास्त्राधारके बिना किसीभी बातका सोचविचार भी किया नहीं जा सकता / उसके बाद प्ररूपणामें किस बात पर जोर दिया जाय, उस बातका अवश्य विचार करें और गीतार्थ भगवंत जैसा कहे, उसके अनुसार आचरण करना चाहिए / मैंने संक्षेपमें मुख्य तीन प्रश्नोंके उत्तर दिये / इस विषयमें विस्तारसे-शास्त्रपाठोंके साथ जानकारी प्राप्त करना चाहते हो, वे यह पुस्तक अवश्य पढ़ लें / इस पुस्तककी दूसरी आवृत्तिका परिमार्जन गीतार्थ आचार्यदेव-गच्छाधिपति पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् जयघोषसूरिजी म.सा., आ. श्री राजेन्द्रसूरिजी म.सा., आ. श्री हेमचन्द्रसूरिजी म.सा., पं. प्रवर श्री जयसुंदर विजयजी, पं. प्रवरश्री अभयशेखर विजयजीने किया है / अनेक आवश्यक शास्त्राधारोंसे इस पुस्तकको मंडित की है / ___ शास्त्रपाठोंका परिशिष्ट नोट - यहाँ प्रमाणरूपमें बताये शास्त्र पाठ यह पुस्तकमें अक्षरश: प्राप्त होंगे / मुख्य तीन विषयों पर के शास्त्रपाठ और विचारणाएँ 1. (1) 'स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करे / ' द्रव्यसप्ततिका और 'श्राद्धविधि' ग्रंथमें ऐसा जो पाठ है, वह केवल घरदेरासरके मालिकोंके लिए है, सभीके लिए नहीं है / सभीके लिए ऐसा पाठ एक भी, कहीं भी दिख नहीं पडता / (धा. वही. विचार (गुजराती) पृ. 203) अलबत्ता, साधन-संपन्ना जैन स्वद्रव्यसे पूजा करे वह अत्यन्त उचित है / वैसा न करे तो धनमूर्छा उतारनेका लाभ उन्हें न मिले, लेकिन वे उससे अन्यथा करे तो देवद्रव्यभक्षणका पाप लगे, ऐसा निर्देश करनेवाला कोई शास्त्रपाठ है नहीं / उपरान्त, अन्य द्रव्यसे पूजा करने पर भी कृपणता