________________ 286. . धार्मिक-वहीवट विचार उपदेशपद, श्राद्धदिनकृत्य, धर्मसंग्रह, ग्रन्थोमें इस विषयके पाठ हैं / यदि देवद्रव्य होगा तो पूजा, आंगी, अष्टाह्निका महोत्सव, महापूजा, आदि होनेका निर्देश किया है। यहाँ कोई कहता है कि, 'यह पाठ देवद्रव्यकी व्यवस्थाका है, जिनपूजाविधिका नहीं / ' तो यह योग्य नहीं / दर्शनशुद्धिमें कहा है किइस देवद्रव्य पूजा तथा वैसे आंगी आदि द्वारा सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिसे लेकर मोक्षप्राप्ति तकके लाभ बताये है / (धा. वहीं. विचार गुजराती पृ. 169) (2) श्राद्धविधिग्रन्थमें 'यत्र आदानादि' द्रव्यागमोपायो नास्ति.... उस पाठ द्वारा देवद्रव्यमें पूजा होनेका स्पष्ट निर्देश है / आदानादि द्रव्य, वह पूजा द्रव्य है / उपरान्त, अक्षत, बलि आदिके विक्रयसे प्राप्त हुआ द्र' वह निर्माल्य-देवद्रव्य है / इन दोनों प्रकारके देवद्रव्योंसे पूजा होनेका यहां उल्लेख है / (धा. वही. विचार गुजराती पृ. 207) (यदि देवद्रव्यसे-अपने लिए जिनमंदिर बनाये जा सकते हैं, तो देवद्रव्यसे जिनपूजाकी सामग्री क्यों लायी नहीं जा सकती ? यह बात स्पष्ट है / ) .. . (3) मूलशुद्धि प्रकरणमें संकाश श्रावकका अधिकार है / उसमें देवद्रव्यसे जिनपूजाका स्पष्ट फलित द्रष्टिगोचर होता है / (धा. वही. विचार गुजराती पृ. 198) (4) सेनप्रश्न (१७६)में आचार्यके चरणोंकी-पाद-चिह्नोंकी पूजा देरासरके केसरसे करनेकी मना की है / उसमें उन केसरादि द्रव्योंसे देवद्रव्य माने हैं / वहाँ साधारण के द्रव्यसे पदचिह्नोंकी पूजा करनेकी छुट्टी दी है / यह बताता है कि राजमार्गसे देवद्रव्यके केसरसे पूजा हो सकती है / (5) घरदेरासरमें देवको समर्पित चावल, बांदाम आदिके विक्रयसे जो रकम प्राप्त हो, उसे देवद्रव्य कहा जाता है / उससे लायी गयी सामग्री द्वारा घरदेरासरका मालिक बड़े देरासरमें जिनपूजा कर सके ऐसा कहा है / हाँ, उस समय उसे स्वद्रव्यकी पूजा अपवादरूप नहीं तथा यहाँ देवद्रव्यभक्षणका पाप बताया नहीं / यदि ऐसा पाप होता तो वैसा ही कहते / लेकिन ऐसा न कहकर केवल मुफ्तमें-व्यर्थकी यशोप्राप्तिदोषके निवारण करने की ही केवल सूचना दी है / (6) श्राद्धविधि और श्राद्धदिन कृत्य ग्रन्थका पाठ देकर विपक्षी लोग कहते है कि - 'परद्रव्यसे पूजा हो नहीं सकती / ' उस पाठमें ऐसा बताया