________________ 278 धार्मिक-वहीवट विचार होता है / यदि दुसरेका केसर घिसा जा सकता है, दूसरेके फूलोंको गंथे जा सकते हैं, तो दूसरेके केसर द्वारा या फूलों द्वारा प्रभुके अंगकी पूजा क्यों नहीं की जा सकती ? उपरान्त, इस प्रकार गरीबोंको जिनपूजा करनेका निषेध करेंगे तो लाखों गरीब जैन, जिनपूजा से वंचित रह जायेंगे / दूसरंके दिये केसरसं या बारहमासके चढ़ावे बोलकर. प्राप्त केसरसे गरीब मनुष्य जिनपूजा करे उसे यदि परद्रव्यकी ही पूजा मानी जाय, उससे वह पूजा न हो सके तो उसे जिनपूजा करनेका लाभ प्राप्त प्रायः न होगा, क्योंकि उसके पास पूजाके लिए अतिरिक्त स्वद्रव्य प्राप्त करनेके अवसर कम हैं। उपरान्त, यदि इस प्रकार परद्रव्यसे किये जानेवाले धर्ममें 'धर्म' न हो तो उपधान, संघ, स्वामिवात्सल्य आदि बंद करने होंगे / क्योंकि अधिकांश जैन इसमें शामिल होकर परद्रव्यका ही उपभोग करते हैं / .. विपक्षके लोग अपनी बातके समर्थनमें 'अनुद्धिमान जैन' विषय पाठका उल्लेखकर कहते हैं कि 'उस पाठमें गरीब मनुष्यको, स्वद्रव्यसे पूजा करने आये श्रीमंत जैनके फूल गूंथने आदि बातें क्यों कही गयी है ?' . इसका उत्तर यह है कि उस गरीबके पास, उस स्थलं पर कोई मालिन आदि नहीं, वहाँ, फूलोंका बाग आदि भी नहीं / संक्षेपमें वहाँ पूजाकी सामग्रीका ही अभाव है / (पूजा सामग्री-अभावात्) इससे उस गरीब मनुष्यके पास वहाँ सामग्री ही उपलब्ध नहीं / अब उसे पूजाका लाभ लेनेकी इच्छा है, तो वह कैसे पूरी हो पायेगी ? उसका जवाब यह है कि वहाँ आये श्रीमंत जैनभाईके फूलोंका गूंथन आदि द्वारा उस इच्छाको पूरी करें ? यहाँ एक बात बतानी है कि यदि वह श्रीमंत जैन उस गरीब मनुष्यसे कहे कि, 'लो, तुम मेरे फूलोंसे पूजा करो' तो क्या वह फूलपूजा न करेगा ? अवश्य करेगा, 'लेकिन शास्त्रोक्त उस पाठस्थान पर श्रीमंत मनुष्यने ऐसी बात कही है ऐसा उसे बताया नहीं / हाँ, तो वहाँ माँग कर तो फूल लिये नहीं जाते, अतः वह गरीब मनुष्य, उसके फूल गंथनेमें ही संतोष मानता है।' सेन प्रश्न (पृ. २८)में ज्ञानद्रव्यसे जिनपूजा हो सकती है, ऐसा निर्दिष्ट किया है / क्या यह ज्ञानद्रव्य, परद्रव्य माना नहीं जायेगा ? उपरान्त, बारह मासके केसरादिके जो चढ़ावे बोले जाते हैं, वे भी कई पूजकोंके लिए परद्रव्य ही बन पाते हैं न /