________________ 277 परिशिष्ट-५ कि यदि वह जैन स्वद्रव्यसे ही पूजा करनेके लिए शक्तिमान हो फिर भी अपने कृपण स्वभाव आदिके कारण वह दूसरेके दिये या संघ द्वारा की गयी व्यवस्था अनुसार अथवा देवद्रव्यमेंसे संघ द्वारा खरीदे केसरादिसे पूजा करे तो, उसे अपनी धनमूर्छा न उतरनेके कारण जो लाभ जिनपूजादि द्वारा होना जरूरी था, उसमें घाटा होगा, लेकिन सावधान, उसमें भी यदि जिनपूजा करते करते उसे अपनी कृपणताके निमित्त पश्चात्ताप हो अथवा जिनपूजा करते समय भावोल्लास हो तो उसमें धनमू के दोषके माइनसकी अपेक्षा ये सारे प्लस बेहद बढ़ जायेंगे / इस प्रकार अन्ततः उसे लाभ ही होगा / अब जो जैन अत्यंत गरीब हो, उनके पास जिनपूजाके लिये जरूरी स्वद्रव्य भी न हो, तो वे जब परद्रव्यसे या देवद्रव्यसे पूजा कर तो उसमें उसे धनमूर्छा उतारनेका सवाल पैदा नहीं होता / (धन ही नहीं हो तो धनमूर्छा उतारनेकी बात ही कहाँ ?) ऐसे गरीब जैनोंको कोई श्रीमंत जैन अपने केसरादिसे-परद्रव्यसे- उसके पास पूजा कराये अथवा देरासरमें संघ द्वारा तैयार करवाकर रखे गये कटोरेके केसरसे वह पूजा करे (हिर-प्रश्न आदि देखनेसे स्पष्ट मालूम होता है कि पहले सामान्यतः देवद्रव्यमेंसे पूजा होती रहती थी और पूजारीको वेतन दिया जाता था) तो उसे कोई दोष नहीं लगता / वे श्रीमंत भाई पूजा करवाते हैं, उसमें उस गरीब जैन भाईके लिए वह केसर परद्रव्यका हुआ और यदि देरासरके देवद्रव्यका केसर हो तो वह सीधा साफ देवद्रव्यका हुआ, तो भी उससे पूजा करनेवाले गरीब भाईको देवद्रव्यभक्षणका दोष नहीं लगता / (उस केसरका उपयोग घरके भोजनके श्रीखंडमें किया जाय तो अवश्य देवद्रव्यभक्षणका दोष लगता है, परन्तु देवपूजामें केसरका उपयोग करेनेसे देवद्रव्य भक्षणका दोष नहीं लगता / यदि भक्षणका ही दोष लगे तो उस देवद्रव्यमेंसे अपवादरूपमें ९०वें संमेलन द्वारा पारित प्रस्तावके अनुसार पूजारीको वेतन दिया नहीं जा सकता / ) यहाँ विपक्षीलोग कहते हैं कि गरीब जैनोंके पास स्वद्रव्य न हो तो उन्हें परद्रव्य या देवद्रव्यसे पूजा ही न करनी चाहिए / उन्हें पूजाका लाभ पाना हो तो जो श्रीमंत जैन केसर पूजा करता है, उसे केसर घिसकर दे अथवा उस श्रीमंतके फूलोंको गूंथकर अथवा देरासरका कूडा निकालकर, उस लाभको प्राप्त करें / ___ यह शास्त्रोक्त कथन बिना गहराईसे सोच-विचार किये कहा गया मालूम