________________ परिशिष्ट-५ 279 ___ (सभी कोई, उनके बदले अवेजमें उस खातेमें रूपये तो डालते नहीं / ) संक्षेपमें कहनेका तात्पर्य है कि शक्तिसंपन्न जैन लोग स्वद्रव्यसे पूजा करें, लेकिन कृपणतादिके कारण वे ऐसा न करें और - गरीब लौग स्वद्रव्य के अभावमें ऐसा कर न पाये तो वे दोनों परद्रव्य या देवद्रव्यसे जिनपूजा करें तो पापबंधन हो-देवद्रव्यका भक्षण रूप महापापबंध हो-ऐसा कह नहीं सकते / हाँ, शक्ति होने पर भी धनमूर्छा न उतारे तो रय श्रीमंतको बड़ा लाभ होनेकी अपेक्षा अल्पलाभ हो इतना अवश्य कह जा सकता प्रश्न :- 2 (1) कल्पित देवद्रव्य किसे कहा जाय ? ___ (2) उसका उपयोग क्या पूजारीको वेतन, जिन': की सामग्री आदिके लिए किया जा सकता है ? उत्तर : संबोध प्रकरण ग्रन्थमें पूज्यपाद हरिभद्रसूरिजी म. सा बने देवद्रव्यके तीन अवान्तर भेद बताये हैं / (1) पूजा देवद्रव्य (प्रभु समक्ष रखे गये भंडारमें डाला हुआ धन आदि) (2) निर्माल्य देवद्रव्य (उतारे गये वरख आदिके विक्रयसे प्राप्त धन आदि) (3) कल्पित देवद्रव्य (संमेलनीय प्रस्ताव अनुसार स्वप्नद्रव्य, उपाधानकी माला आदिकी उछामनियों द्वारा प्राप्त होनेवाला धन) तीसरा कल्पित देवद्रव्य है / जिनमंदिरके निभावके लिए जिस धनका संकल्प किया हो, उसे कल्पित देवद्रव्य कहा जाता है / इन तीन प्रकारके देवद्रव्यकी व्यवस्थाका, इस शतकमें हुए स्वर्गीय महागीतार्थ आचार्य-पूज्यपाद सागरनंद सूरीश्वरीजी म. सा., पूज्यपाद प्रेमसूरीश्वरजी म.सा., पूज्यपाद रविचंद्र -सूरीश्वरीजी म.सा. (उनकी प्रश्नोत्तरकर्णिका देखे) आदिने समर्थन किया है / उपरान्त, इ.स. १९७६में खंभातमें हुए संमेलनमें पू. कमलसूरीश्वरजी म.सा. आदि कई गीतार्थ आचार्योंने भी इसका समर्थन किया है / उन्होंने बताया है कि, ___अष्टप्रकारी पूजाकी बोली जानेवाली उछामनियाँ, स्वप्न, उपधान आदि मालाओंकी बोलियाँ, आदिको कल्पित देवद्रव्य कहा जाय / उसमेंसे जिनभक्तिके सभी कार्य किये जा सकते हैं / नहीं, अपवादरूपसे नहीं, परन्तु राजमार्ग से / (इस बातकी, स्वर्गगत पू. पाद प्रेमसूरीश्वरजी म. साहबने अपने पत्रमें -स्पष्टता की है / ) (देखें, इस पुस्तकके परिशिष्ट 3)