________________ धार्मिक-वहीवट विचार (23) सुसाधुओंका वह बहुमान करता हो और सूक्ष्मतासे निरीक्षण करने पर, जिनमें अक्षम्य शिथिलता दृष्टिगोचर हो, उसकी उपेक्षा करें, विनयपूर्वक एकान्तमें गंभीरतासे ऐसे साधुओंको सीख भी देता हो और उनकी माता बनकर यथाशक्य उनका जीवन सुमधुर बन पाये, उसके लिए हर तरहकी कुरबानी करनेके लिए भी तत्पर हो / ट्रस्ट और ट्रस्टीमंडल ट्रस्ट दो प्रकारके होते हैं / रीलिजियस, और चेरिटेबल / अर्थात् धार्मिक और सार्वजनिक / अमुक विशिष्ट धर्मके ट्रस्टको धार्मिक ट्रस्ट कहते हैं, जब कि मानवतापूर्ण सार्वजनिक कार्योंके लिए. बने ट्रस्टको चेरिटेबल ट्रस्ट कहे जाते हैं / कर्णपरंपरितज्ञानानुसार थोडी-सी भी वार्षिक आमदनी हो ऐसी संस्था को अनिवार्य रूपसे ट्रस्टकी रचना करनी पडती है / उसका 'चेरिटी कमिश्नर' के कार्यालयमें पंजीकरण कराकर ट्रस्ट रजिस्टर क्रमांक लेना पडता हैं / ट्रस्टका संविधान-उद्देश, आदिसे युक्त होना चाहिए / यदि ऐसा ट्रस्ट धार्मिक हो तो उसके दाताओंको आयकरमेंसे मुक्ति देनेवाली 80-जी क्रमांकवाली कलमका लाभ नहीं मिलता / सार्वजनिक-दानी ट्रस्टके दाताओंको इसका लाभ मिलता है / अत: 80-जीका लाभ प्राप्त करनेके लिए ट्रस्टको सार्वजनिक बनानेके लिए, ट्रस्टीमंडल सर्वप्रथम प्राथमिकता देता है। लेकिन इस लाभके विरुद्ध सबसे बड़ा गैरलाभ यह है कि ऐसे ट्रस्टको ‘सभीके लिए' खुला रखना पडता है / उसमें सभ्योकों सभी प्रकारके अधिकार प्राप्त होते हैं / अत एव देरासर आदिके जो-जो भी ट्रस्ट कार्यरत हों, उन्हें 'सार्वजनिक ट्रस्टोंमें' परिवर्तित करने के लिये लालायित नहीं होना चाहिए / भले ही उसके दाताओंको 80-जी नियमके लाभ प्राप्त न होते हों / वर्तमानकालमें इस नियमका लाभ प्राप्त हो उसके लिए पांजरापोलोंके स्थान पर गौशालाएँ खडी करना जीवदयाप्रेमी प्राथमिकता देते हैं / गौशाला यानी गायके दूधका व्यापार द्वारा मुनाफा करनेवाली संस्था / इस संस्थामें भंड, हिरन, बकरियां आदिके प्रति जीवदयाका अवकाश नहीं रहता / सरकारकी करमुक्ति देनेवाले नियमके लालचमें जीवदयाप्रेमी लोग भंड आदि जानवरोंके प्रति दया दिखाने में निष्ठुर बने रहते हैं / यह उचित नहीं; बल्कि सरासर गलत है / जो लोग सर्व जीवोंके प्रति दयाके समर्थक-अनुमोदक हैं, उन्हें तो चाहिए कि वे