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________________ परिशिष्ट-३ 261 (2) निर्माल्य द्रव्य, मंदिरके कार्यमें उपयोगी हो सकता है और द्रव्यान्तर कर, प्रभुके आभूषण भी उसमेंसे बनाये जा सके / / (3) कल्पित (आचरित) द्रव्य, मूर्ति और मंदिर दोनोंके कार्यों में उपयोगी हो सकता हैं / __ संबोध प्रकरण अनुसार, देवद्रव्यके ऐसे शास्त्रीय तीन विभाग अलग न रखनेसे, देखें कि कैसी परिस्थिति उपस्थित होती है ? आदान द्रव्यका मंदिरमें और निर्माल्यद्रव्यका प्रभुपूजामें खर्च करनेकी परिस्थिति खडी हो जाती है / उदा.के रूपमें आदान-द्रव्य मंदिर कार्यमें और जीर्णोद्धारमें खर्च करनेकी नौबत आती है, तब निर्माल्य द्रव्य भी एक ही देवद्रव्यके विभागमें जमा करनेसे प्रभुके अंग पर चढ़नेकी परिस्थिति उत्पन्न होती हैं / श्राद्धविधि आदिके अनुसार देवद्रव्यके दो विभाग है :(1) आदान द्रव्य . (2) निर्माल्य द्रव्य पूजाविधिके लिए, पंचासकजीमें स्वद्रव्यसे पूजा करनेका विधान है और श्राद्धविधि आदिके आधार पर ऐसा विधान है कि (1) ऋद्धिमान श्रावक सहपरिवार, आडम्बरके साथ, अपनी पूजाकी सामग्री लेकर पूजा करने जाय और (2) मध्यम श्रावक, सहकुटुंब अपना द्रव्य लेकर प्रभुपूजा करने जाय तब (3) गरीब श्रावक सामायिक लेकर प्रभुके देरासरमें जाय और वहाँ सामायिक परस्पर को फूल गूंफन आदि का कार्य हो तो करे / 'फूलपॅफन आदिका कार्य हो तो करे' खास नोंध : यह पत्रमें उपरोक्त उल्लिखित हकीकतकी ज्यादा स्पष्टताके लिए इसी पुस्तकके परिशिष्ट 2 में गणिश्री अभशेखरविजयजी द्वारा दिये गये 'देवद्रव्यके प्रस्तावके विषयमें 'चिंतन में सविस्तर य जानकारी देखना आवश्यक है। प्रथम विज्ञापित 1-2-3-4-5 क्रमांककी बातोंमें जो कुछ द्रव्य का घाटा बना रहे, तो उसके विषयमें लिखनेका यह कि योग्य रीतिसे उस घाटा को सम्हाला जाय, लेकिन देवद्रव्यमेंसे तो एक पैसा उन क्षेत्रोमें खर्च किया नहीं जाना चाहिए / सरकारके विचित्र कानून, धार्मिक विभागमें जो दखलंदाजी कर रहे हैं, उसके लिए अधिकारी संचालक लोग देवद्रव्यका उपयोग, नूतन मंदिर, .
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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