________________ 260 धार्मिक-वहीवट विचार ... (6) देवद्रव्यमेंसे अनावश्यक वेतन देकर जो अनावश्यक स्टाफ रखा जाता है, वह अनुचित है और देवद्रव्यमेंसे वेतनभोगी स्टाफके मनुष्योंका उपयोग मूर्ति, मंदिर या उसकी द्रव्य व्यवस्थाके अलावाकी बाबतोंके लिए करना, उसे देवद्रव्यका दुरुपयोग कहा जाता है / उपरान्त, अनावश्यक स्टाफ रखना, वह भी देवद्रव्यको हानि पहुँचानेवाला कार्य बन पाता है / (7) कई स्थानोंमें, देवद्रव्यकी अधिक आय चालू होने पर भी उसको बाहर जीर्णोद्धार आदिमें नहीं दिया जाता और अपने अधिकारके मंदिरके और प्रभुके भी आवश्यक उपयोगमें नहीं किया जाता और उससे केवल रकम ही बढायी जाती है, वह अत्यंत अनिच्छनीय है / / (8) कर्मादान आदि अयोग्यसे देवद्रव्यकी वृद्धिको भी शास्त्रने हेय मानी है, तो ऐसी वृद्धि और उपरोक्त अनुचित बातें, ये दोनों घोर पापकी कमाई करानेवाले और समस्त संघको नुकसान पहुँचानेवाले हैं / देरासर, उपाश्रयके ट्रस्टी लोग खास ध्यानमें रखें कि देवद्रव्य यह देवकी मालकियतका (देवभक्ति आदिके लिए). अति पवित्र द्रव्य है / अतः उसका उपयोग देव या देवके मंदिरके कार्यके सिवा अन्यत्र होना न चाहिए / अन्यथा, दूसरे क्षेत्रोमें देवद्रव्यका उपयोग करनेसे भयंकर पापका बंध होता है और देवद्रव्यकी व्यवस्था करनेवाला प्रत्येक ट्रस्टी उसका समर्थक तो हो ही नहीं सकता / देवद्रव्य, श्राद्धविधि आदि ग्रन्थोंके आधार पर पूजा, महापूजा, महोत्सव, जीर्णोद्धार आदि अनेक कार्यों में उपयोगमें लाया जाता है / उपर निर्देशानुसार देवद्रव्यके किये गये और किये जानेवाले अयोग्य संग्रह, अनुचित हवाले तथा दुरुपयोगकी जानकारीसे मेरे दिलमें पारावार दु:ख हो पाया है / अतः मेरी तुमसे भावपूर्वक प्रार्थना है कि बम्बईमें होनेवाली ये वस्तुएँ जैनसंघके कल्याण और अभ्युदयकी घातक हैं, उन्हें दूर करनी चाहिए / तुमारे प्रस्तावके अनुसार सोचविचार करने पर भी पहली बात यह है कि संबोध प्रकरणके हिसाबसे देवद्रव्यके तीन अलग विभाग होने चाहिए / (1) प्रथम विभागमें आदानं आदि द्रव्य / वह प्रभुपूजादिके लिए दिये गये द्रव्य प्रभुकी अर्थात् प्रभुप्रतिमाकी भक्तिके कार्यमें उपयोगी बन सकता हैं /