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________________ परिशिष्ट-२ 221 प्रत्यर्पण देवद्रव्यमें करना होगा' ऐसा वृत्तिकारके वचनविशेषके अलावा 'वस्त्रादिविषयक प्रत्यर्पण वैयावच्चकार्यमें करना' ऐसी बात परसे पाठकको कैसे पता चले और 'वस्त्रादिविषयक बातसे बिल्कुल भिन्न ऐसी यह बात, मेरे किसी भी प्रकारके बिना वचन भी अध्येताको पता चल जायेगा' ऐसा मानकर वृत्तिकार उस बातको बिना छुए छोड भी कैसे सकते हैं ? 'कनकादौ' शब्दका उपरोक्त विवरण करना आवश्यक समझनेवाले वृत्तिकारको ऐसी महत्त्वकी बात विवरण करने योग्य महसूस न हुई, ऐसा कैसे माना जाय ? अतः वास्तविकता यह है कि वृत्तिकारके मनमें वस्त्रादिके लिए जो बात की गयी, यही कनकादिके विषयमें भी चलती है और इसी लिए उसका अलग विवरण किया-दिया नहीं / वस्त्रादिके लिए जो बात कही गयी हो उससे वह बिल्कुल भिन्न हो और जिसका पहले कहीं नामनिर्देश भी न हो, ऐसी बात भी 'वस्त्रादि' शब्दके उपलक्षणसे गृहीत हो ऐसी मान्यताको 'गुरुसंबंधी कनकादि देवद्रव्यमें ही जाय' ऐसी बंधी हई अशास्त्रीय मान्यताका ही एक खेल समझें या अन्य कुछ ? शंका : हम केवल श्रा. जी. वृत्तिके वचनोंके आधार पर इस मान्यताका स्वीकार नहीं करते, लेकिन उपर कहे गये द्रव्य सप्ततिकाके वचन पर आधारित है। . समाधान :- अतः श्रा. जी. वृत्ति परसे 'गुरुसंबंधी कनकादि देवद्रव्यमें ही जाय, ऐसा सिद्ध नहीं होता' इतना तो निश्चित हो गया। अब द्रव्यसप्ततिका पर से भी वह बात सिद्ध हो नहीं सकती, उसे देखें (1) गौरवार्ह स्थान पर प्रयोक्तव्यम्' ऐसे कथनमें आये 'गौरव' शब्दका विचार करें तो 'गुरोः भाव: गौरवम्" गुरुता वो ही गौरव है और सीधा ही सोचे तो पंचमहाव्रतधारी गुरु क्या गौरवाह नहीं ? कि जिससे उसका निषेध आवश्यक बन पाये ? . . (2) 'जीर्णोद्धारे नव्यचैत्यकरणादौ' ऐसे विधान परसे भी यह सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि उसमें जो 'आदि' शब्द रहा है पूर्वमें उससे गुरुवैयावच्च लिया जा सकता है / प्रश्न :-'आदि' शब्दके विषयमें पूर्व में जो बातें हुई हो, उनके समान बातोंका ही 'आदि' शब्द से ग्रहण हो सकता है / प्रस्तुतमें जीर्णोद्धार और नव्यचैत्यकरण कहनेके बाद 'आदि' शब्द प्रयुक्त हुआ है / ये दो देवद्रव्यके विषयभूत होनेसे 'आदि' शब्दसे उसके समान ऐसी देवद्रव्यकी विषयभूत अन्य बातें ही गृहीत हो न सके ?
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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