________________ 220 धार्मिक-वहीवट विचार गुरुद्रव्यत्वकी (या आदिपदग्राह्यत्वकी) प्रसिद्धि हो गयी अतः वह भी गुरुद्रव्यत्वरूपसे या 'जलन्नाइसु' पद घटक आदि शब्द ग्राहत्वसे वस्त्रादिके तुल्य ही बन गये और उससे प्रत्यर्पणविधिविषयक 'वस्त्रादि' शब्दसे उसका भी ग्रहण करनेमें कोई बाधा नहीं / (श्रीतत्त्वार्थ सूत्र नं. 2-38, 'तेषां परं परं सूक्ष्म के भाष्यमें 'तेषां औदारिकादिशरीरिणां' ऐसा जो कहा है उसकी व्याख्या करते हुए वृत्तिकारने सूचित किया है कि 'वैक्रिय आदि शरीरोंकी बात पूर्वसूत्रमें उल्लिखित हो जानेसे उसका पृथग् उल्लेख न कर, 'औदारिकादि' इस प्रकार 'आदि' शब्द द्वारा ग्रहण किया है / ' ____ उपरान्त, 'वस्त्रादौ देवद्रव्यवत्'- वस्त्रादिमें देवद्रव्यके तुल्य समझें, ऐसा जो सूचित किया है, उसमें तुल्यता किस प्रकारकी ग्रहण करनेकी है ? केवल प्रत्यर्पण रूपमें या देवद्रव्यमें प्रत्यर्पण रूपमें ? देवद्रव्यमें प्रत्यर्पण रूपमें तुल्यता यदि लेनी हो तो वह वस्त्रादिके परिभोग निमित्त भी देवद्रव्यमें ही प्रत्यर्पण करना हो और तो फिर साधुकार्यमें ही प्रत्यर्पण करनेकी जो बात वहाँ ही की है, उसका विरोध होगा / अतः यहाँ 'प्रत्यर्पण'के रूपमें तुल्यता समझें और प्रत्यर्पण किसमें करें यह बतानेके लिए वृत्तिकारने साधुकार्योंका निर्देश किया है / उससे कनकादिको वस्त्रादिसे अलग करें तो भी प्रत्यर्पण तो गुरुवैयावच्चमें ही करना फलित होता है / उपरान्त, एकबार कनकादिकी बात वस्त्रादिके उपलक्षणसे लेना गृहीत समझें तो भी प्रत्यर्पण तो वैयावच्चमें करनेका ही सिद्ध होता है / तो इस प्रकार उपलक्षणसे लेनेकी बात साक्षात् कही बात तुल्य ही समझी जाय, भिन्न नहीं / उपलक्षणसे साक्षात् उक्तके सिवाकी अनुक्त बात गृहीत की जाय, लेकिन उसका विधान तो उक्तविधान जो हो उसे ही गृहीत करनेकी मर्यादा है / जैसे कि, 'जीव नित्यानित्य है / ' इस विधान पर से 'जीव के उपलक्षणसे 'अजीव' भी गृहीत करने हो तब अजीवको भी नित्यानित्यके रूपमें ही गृहीत किये जा सकते हैं / एकान्त नित्य या एकान्त अनित्यके रूपमें नहीं / इस प्रकार प्रस्तुतमें, वस्त्रादिके विषयमें गुरु वैयावच्चमें प्रत्यर्पण करें' ऐसे विधानमें वस्त्रादिके उपलक्षणसे कनकादि गृहीत करने हो तो भी 'कनकादि विषयमें गुरुवैयावच्चमें प्रत्यर्पण करें' ऐसा विधान ही गृहीत करें / बाकी, आप कहते हैं उस प्रकार उसे उपलक्षणसे गृहीत करें तो किसी प्रकार उचित नहीं, क्योंकि आगे जब कहीं भी 'यतिसत्क सुवर्णादि देवद्रव्य है / ' इत्यादि बात आयी न हो तब 'यहाँ कनकादिके प्रायश्चित्तमें