________________ 214 धार्मिक-वहीवट विचार त्रिकालाबाधित परमपवित्र श्री जिनाज्ञा विरुद्ध इस लेखमें जो लिखा गया हो उसका त्रिविध स्वरूपमें मिच्छामि दुक्कडम् / शुभं भूयात् श्रीश्रमणसंघस्य......... (2) गुरुद्रव्य पर विचार (श्राद्धजित कल्पकी 68 वी गाथाका रहस्यार्थ) - गणि श्री अभयशेखर विजयजी अथ यतिद्रव्यपरिभोगे प्रायश्चित्तमाहमुहपत्ति आसणाइसु भिन्नं जलन्नाईसु गुरुलहुगाइ / जइदव्वभोगि इय पुण वत्थाइसु देवदव्वं वाव ? / / 68 // व्याख्या : मुखवस्त्रिकाऽऽसनशयनादिषु, अर्थाद् गुरुयतिसत्केषु परिभुक्तेषु भिन्नम् / तथा जलन्नाइसु त्ति - यतिसत्के जले अन्ने 'आदि' शब्दात् वस्त्रादौ कनकादौ च.... धर्मलाभ इति प्रोक्ते दुरादुच्छ्रितपाणये / सुखे सिद्धसेनाय ददौ कोटिं नराधिपः / इत्यादिप्रकारेण केनापि साधुनिश्रया कृते लिङ्गिकेसत्के वा परिभुक्ते सति' गुरुलहुगाइ'त्ति क्रमेण गुरुमासश्चतुर्लघव आदिशब्दाच्चतुर्गुरवः षड्लघवश्च स्युः / यतिद्रव्यभोगे इयत्ति एवं प्रकारः प्रायश्चित्तविधिरवगन्तव्यः / अत्रापि पुनर्वस्त्रादौ देवद्रव्यवत् वक्ष्यमाणदेवद्रव्यविषयप्रकारवत् ज्ञेयम् / अयमर्थः यत्र गुरुद्रव्यं भुक्तं स्यात्तत्रान्यत्र वा साधुकार्ये वैद्याद्यर्थं बन्दिग्रहादिप्रत्यपायापगमाद्यर्थं वा तावन्मितवस्त्रादिप्रदानपूर्वमुक्तं प्रायश्चित्तं देयमिति गाथार्थः // 68 // . किसी श्रावकसे साधु संबंधी द्रव्यका उपयोग हो गया हो तो क्या प्रायश्चित्त करना होगा ? उसका जिक्र अब किया जा रहा है : गाथार्थ :- मुहपत्ति - आसन आदि (अपने व्यक्तिगत उपयोगमें) उपभुक्त किये हों तो, भिन्नमास, जल-अन्न आदिका उपयोग हुआ हो तो, मासगुरु, चतुर्लघु आदि प्रायश्चित्त दें / गुरुद्रव्य उपभुक्त हो जानेके प्रायश्चित्त विधि ऐसा समझें / इसमें विशेषता यह है कि वस्त्रादिका उपयोग हुआ हो तो देवद्रव्यके अनुसार समझें / दृत्तिका अर्थ :- गुरुके मुहपत्ति - आसन आदिका उपयोग हुआ हो तो भिन्नमास प्रायश्चित्त दें / अब 'जलन्नाइसु' पदकी व्याख्या-इसमें 'आदि' शब्द जो रहा है, उससे वस्त्रादि और कनकादिका भी जल-अन्नके साथ समावेश समझ लें / (यहाँ वृत्तिकार विशेष बात सूचित करते हैं / ) दूर