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________________ परिशिष्ट-२ 213 निमित्ते बोली जानेवाली उछामनी अथवा स्वप्न बोली / इस द्रव्यका उपयोग जिनेश्वरदेवकी भक्तिके सभी कार्योंमें किया जा सकता है / इस प्रश्नोत्तरीके विषयमें अब तक 'उसमें स्वर्गस्थ आचार्यश्रीने गलती की है- यह उत्तर गलत है / ' ऐसी मान्यताएँ या विज्ञापन नहीं था अब उन्हें क्षतिपूर्ण घोषित करना, यह आत्मवंचना नहीं है ? अब की जानेवाली ऐसी घोषणासे सुज्ञजन उस पक्षके प्रति संशयकी दृष्टिसे देखते हो जायेंगे नहीं ? इस प्रकार सपनेकी उछामनी आदिका द्रव्य कल्पित देवद्रव्य है, उस बातमें कोई असंगति नहीं है, फिर भी विरोधपक्ष उसका स्वीकार करनेके लिए तैयार न होनेसे, उसको भी कोई विरोधका कारण न रहे उसके लिए, विशेष विभागकी विवक्षाके सिवा, सामान्यतया ही, देवद्रव्यमेंसे भी केसरचंदन आदि सामग्रीकी व्यवस्था करना, यह शास्त्रनिषिद्ध नहीं है, लेकिन विहित है उसका इस लेखमें प्रतिपादन किया है / जब किसी भी देवद्रव्यमेंसे केसर आदिकी व्यवस्थाका शास्त्रकारोंने निषेध नहीं किया तब तथाविध परिस्थतिमें सपना आदिकी बोलीके द्रव्यसे उस व्यवस्थाके निर्णयको शास्त्रविरुद्ध कहा ही न जाय, यह स्पष्ट है / (3) विरोध करनेवाले वर्गका विरोध करनेमें मुख्य हेतु सामान्य रूपमें देवद्रव्यमेंसे जिनपूजा न हो, स्वद्रव्यसे ही हो, संमेलनवाले देवद्रव्यको साधारणमें ले गये, स्वप्न देवद्रव्यकी हानि की... इत्यादि होनेसे भी इस लेखमें देवद्रव्यके विशेष विभागकी मुख्यतया विवक्षा की नहीं है / देवद्रव्यमेंसे पूजा हो तो 'वह निषिद्ध नहीं या उसमें देवद्रव्यकी हानि नहीं' इत्यादि इस लेखमें स्पष्ट हुआ ही है / . ___(4) देवद्रव्य विषयका प्रतिपादन करनेवालें अनेक ग्रन्थके ग्रन्थकारोंने देवद्रव्यके 3 विभागोंकी बिना विवक्षा किये सामान्य रूपसे देवद्रव्यके उपयोगोंका प्रतिपादन किये होनेसे, कई शास्त्रपाठ भी उसी प्रकारके ही मिलते हैं और इस प्रकार देवद्रव्यसामान्यमेंसे जिनपूजा आदि शास्त्रविधि सिद्ध हो जानेसे सपनाकी बोली आदिके द्रव्यमेंसे उसे करना भी शास्त्रविहित ही है ऐसा सिद्ध हो जानेसे भी इस लेखमें मुख्यतया देवद्रव्यके विशेष विभागकी विवक्षा की नहीं /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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