________________ 210 धार्मिक-वहीवट विचार पास ऐसी शक्ति नहीं उसे दी है / अतः उसके पास द्रव्यरूप परिग्रह ही नहीं है तो रोग कायम रहनेकी तो बात ही कहाँ ? और पूरी शक्ति होने पर भी जो स्वद्रव्यसे जिनपूजा नहीं करता, अन्यके द्रव्यसे करता है, उसका परिग्रहका रोग दूर होगा या नहीं, उसे - सोचें...... ... एक व्यक्तिके पास लाख रूपये हैं / उसमें से रू. 1,000 का सव्यय कर, वह स्वद्रव्यसे प्रभुभक्ति करता है / उसकी यह पूजा स्वद्रव्यसे होनेके कारण परिग्रहरोग नाबूद करनेमें सक्षम है, यह बात सामान्यतया तो उभय पक्ष संमत है / मेरा प्रश्न इतना ही है कि वह पूजा उसके खर्च किये रू. १,०००के अंशके परिग्रह रोगका नाश करेगी या प्रभुपूजामें सद्व्यय न की गयी और उस व्यक्तिके पास बची रू. 99,000 की रकमके अंशका परिग्रह रोगका (सर्वथा या आंशिक रूपमें) नाश करेगी ? ___ रू. 1,000 के अंशभूत परिग्रह रोगका नाश करेगी / ' ऐसा यदि कहेंगे तो उसका अर्थ यह हुआ कि 'प्रभुपूजाने तो इसमें कुछ काम नहीं किया, क्योंकि रू. 1,000 की मूर्छाका त्याग तो उस व्यक्तिने स्वयं ही किया है / ' लेकिन उसके दिलमें रू. 1,000 का सद्व्यय करनेका जो भाव स्फुरित हुआ, इसीमें प्रभुपूजाका तात्पर्य है / ' ऐसा कहना उचित नहीं, क्योंकि रू. 1,000 के सद्व्ययका भाव तो पहले ही जागृत हुआ है / प्रभुपूजा तो उसने बादमें की है और बादमें बाकी रहे रू. 99000 परकी मूर्छा हटानेका सामर्थ्य प्रभुपूजामें नहीं, ऐसा आपका कहना है / अतः स्वद्रव्यसे की गयी प्रभुपूजाने भी उसे कोई लाभ नहीं कराया, ऐसा माननेकी नौबत आयेगी / अत: आप अब ऐसा कहेंगे कि 'उसके पास रहे रू. 99000 परकी मूर्छाका (आंशिक या सर्वथा) नाश प्रभुपूजा करेगी।' तो उसका अर्थ यह हुआ कि 'जो द्रव्य प्रभुपूजामें उपयुक्त नहीं हुआ, उसके परकी मूर्छाका भी नाश करनेका सामर्थ्य प्रभुपूजामें है / ' (यही अर्थ उचित और तो पुनः अपने पास लाख रूपये होने पर भी, जो अप्रत्या. या प्रत्या. कक्षाके प्रबल लोभके कारण देरासरकी सामग्रीसे प्रभुपूजा करता है, वही पूजा जो लाख रूपयोंका द्रव्य प्रभुपूजामें उपयुक्त हुआ नहीं, उसके