________________ 206 धार्मिक-वहीवट विचार . __प्रायः प्रत्येक देरासरमें संघकी ओरसे केसर-चन्दन आदिकी व्यवस्था की जाती है / फिर भी, स्वद्रव्यसे पूजा करनेवाले हजारों श्रावक हैं और पूजा करते करते भक्तिभाव आदिमें वृद्धि होनेसे और महात्माओंके उपदेश आदिसे, स्वद्रव्य द्वारा पूजा करनेवालोंकी संख्यामें शत-प्रतिशत बढ़ावा होता जा रहा है / साधारणविभागमेंसे केसर आदिको व्यवस्थाके बारेमें 'स्वद्रव्यसे पूजा करनेवाले कम हो जायेंगे' आदि भय न दिखाये और जहाँ उसकी भी शक्यता न हो, ऐसे किसी स्थल पर देवद्रव्यमेंसे उसकी व्यवस्था की जाय तो ऐसा भयस्थान दिखाना कितना उचित होगा ? बाकी तो, आज विषमकालमें भी, जो श्रावकसंघ प्रतिवर्ष प्रभुके प्रति उभरती भक्तिसे चढ़ावे आदिमें करोडों रूपयोंका सद्व्यय करता है, उस श्रावकसंघके लिए, किसी ऐसे गाँव आदिमें देवद्रव्यमेंसे केसर आदिकी व्यवस्था करने मात्रसे, 'श्रावकोंको देवद्रव्यके मुफ्तके मालसे प्रभुपूजा करनेकी आदत पड जायेगी और उसमें 5-25 रूपये खर्च करनेका बंदकर बचत करनेकी वृत्तिवाले वे बन जायेंगे / ' ऐसी कल्पना भी कैसे हो सकती है, यह एक प्रश्न है / जिन्हें ऐसी कल्पना होती हो, उन्हें पक्षपात छोडकर तटस्थतासे आत्मनिरीक्षण करनेकी आवश्यकता है, ऐसा क्या महसूस नहीं होता ? (6) 'प्रतिदिनकेसर-चन्दन आदिका देवद्रव्यमेंसे उपयोग होगा तो देवद्रव्यको नुकसान होगा' ऐसी दलीलें भी गलत हैं / पहली बात तो यह है कि यह देवद्रव्यकी हानि है या सदुपयोग ? जो द्रव्य, जिस प्रयोजनसे एकत्र किया गया हो, उस द्रव्यका उचित व्यवस्थाके साथ उसी प्रयोजनके लिए उपयोग किया जाय, उसे भी 'विनाश ' कहा जाय तो फिर जीर्णोद्धार आदिमें देवद्रव्यका उपयोग भी देवद्रव्यका दुर्व्यय माना जायेगा / क्योंकि देवद्रव्यकी वृद्धिके प्रयोजन स्वरूप जिनपूजा और जीर्णोद्धार दोनों साथ साथ उनउन ग्रंथोमें निर्दिष्ट किये हैं / और इस प्रकार जीर्णोद्धारादिमें होनेवाले उपयोगको भी यदि हानिरूप मानना हो तो उसे भी बंद कर देनेसे देवद्रव्यकी केवल कंजूसके धनकी तरह वृद्धि ही करनी होगी / उसका कोई उपयोग तो कर ही नहीं पायेंगे, जो किसी भी तरह शास्त्रसंमत नहीं है / जैसे ज्ञानविभागमेंसे, किसी साधु-साध्वीजी महाराजको पढ़ानेवाले ब्राह्मण