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________________ परिशिष्ट-२ 205 उतनेसे ही 'उसमें भगवानकी भक्ति क्या की ?' ऐसा प्रश्न कैसे उठाया जा सकता है ? इन्द्र द्वारा मँगवाये क्षीरसमुद्रके पानी आदि सामग्री द्वारा सभी देव प्रभुजीका अभिषेक करते हैं / यह सामग्री तत्तद् देवादिको स्वद्रव्यरूप नहीं, क्या उसीके कारण उनके लिए ऐसा कहा जाय कि 'परद्रव्यसे अभिषेक किया, उसमें भक्ति कौनसी की ?' उनके भक्तिभावकी प्रशंसा करते हुए शास्त्रकारोंने कहा है कि_ 'येषामभिषेककर्म कृत्वा मत्ता हर्षभरात्सुखं सुरेन्द्राः तृणमपि गणयन्ति नैव नाकं प्रातः सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः // ' अर्थ : जिनेश्वरदेवोंके जन्माभिषेककी क्रिया कर हर्षित हुए देवेन्द्र, इस जन्माभिषेक करनेसे महसूस किये आनंदके समक्ष स्वर्गसुखको तृणवत् भी नहीं गिनते, वे जिनेन्द्र प्रात:काल कल्याणकर बनो / ' (5) 'इस प्रकार देवद्रव्यमेंसे यदि जिनपूजा होने लगेगी तो फिर श्रावक स्वद्रव्यसें पूजा करनेका ही धीरे धीरे छोड देंगे / ' यह बात तो सिर्फ एक काल्पनिक भय दिखानेके अलावा दूसरा कुछ नहीं, ऐसा लगता आज कई स्थानों पर देवद्रव्यके लाखों रूपये खर्चकर जिनमंदिरें बनाये जाते हैं फिर भी 25-50 लाख रूपयेका स्वद्रव्य लगाकर जिनमंदिर निर्माण करनेवाले पुण्यशाली श्रावक आज भी जैनसंघमें विद्यमान हैं / अपने संघमें जिनालय निर्माणके लिए चारों ओरसे लाखोंका देवद्रव्य प्राप्त हो सके ऐसी संभवितता होने पर भी, अपने संघमेंसे ही 'टीप' आदि कर जिनमंदिर खडा करनेकी भक्ति-भावनावाले अनेक संघ आज भी विद्यमान हैं / देवद्रव्यसे जिनमंदिर निर्मित हो सकता है फिर भी लाखों रूपयोंसे होनेवाले जिनमंदिर निर्माण जैसे कार्य स्वद्रव्यसे होनेसे रूक गये नहीं है तो केसर-चंदन-पुष्पादि सामग्री स्वद्रव्यसे आती हुई रूक जायेगी, ऐसी कल्पना कैसे की जाय ? इसी प्रकार आंगी-मुकुट-आभूषण आदि भी अनेक स्थान पर देवद्रव्यमेंसे बनाये जाते हैं, फिर भी हजारों लाखों स्वद्रव्यमेंसे खर्चकर, हीरा-सोनाचाँदीके गहने बनवाकर श्रावक प्रभुजीको समर्पित करते हैं / ज्ञानद्रव्यमेंसे अनेक ग्रंथ प्रकाशित होते हैं फिर भी उनके प्रकाशन का लाभ, हजारों रूपयोंके स्वद्रव्यसे, श्रावक लोग आज भी लेते हैं /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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