________________ 204 धार्मिक-वहीवट विचार . देवद्रव्यसे लाखों रूपयोमेंसे भव्य जिनमंदिर तैयार हो, उसमें कार्यकर्ताओंने भी भगवद्भक्ति की ऐसा कहा जाय और प्रशंसापात्र बने तो देवद्रव्यमेंसे जिनपूजा करनेवालेने भी प्रभुभक्ति की है, ऐसा क्यों कहा न जाय ? देवद्रव्यमेंसे बनाये मुगुट आदि आभूषण प्रभुजीको समर्पित करने में भक्ति हो और फूल चढानेमें न हो, ऐसा अर्धदग्ध न्याय क्यों ? देवद्रव्यमेंसे देरासरकी सुंदर कोतरणी आदि द्वारा शोभा आदी की जाय और प्रतिमाजीकी फूलों द्वारा शोभा आदि की न जाय ? . . भगवानके मालसे (देवद्रव्यसे) भगवानकी भक्ति करने में श्रावक को लाभ भी क्या होगा ? ऐसा प्रश्न करना भी उचित नहीं; क्योंकि लाभ होने, न होनेमें मुख्यरूपसे भावोल्लास ही केन्द्रमें होता है / देवद्रव्यसे पूजा करनेवालेको भावोल्लास पैदा ही न हो, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं / देवद्रव्यसे निर्मित भव्य मंदिरके दर्शनसे भी अगर भावोल्लास महसूस होते हे, तो देवद्रव्यमेंसे पूजा करनेमें क्यों महसूस न होने पाये ? द्रव्यसप्ततिकामें देवद्रव्यका नाश करनेसे पूजा आदिके लोप होनेके कारण, उस पूजासे होनेवाले प्रमोदका अभाव निर्दिष्ट किया है / (देखें पाठ एच) इससे स्पष्ट होता है कि देवद्रव्य हो तो उससे पूजा की जाय और ऐसी पूजा करनेसे श्रावकको हर्ष-भावोल्लास महसूस होता है / वसुदेव हिंडीमें बताया गया है कि जो चैत्यद्रव्यका विनाश करता है वह जिनबिम्बकी पूजाको देखकर आनंदित होनेवाले भव्य जीवोंको सम्यक्त्वादिकी प्राप्तिमें अवरोध पैदा करता है / (देखें पाठ आई) इससे भी स्पष्ट होता है कि देवद्रव्य हो तो उससे जिनपूजा हो, जिसे देखकर भव्यजीवोंको आनंद महसूस होता है / देवद्रव्यसे होनेवाली जिनपूजाके दर्शनसे भी आनंदोल्लास महसूस होता हो तो देवद्रव्यसे जिनपूजा करने में वह महसूस न हो, ऐसा कैसे कह सकते हैं ? और देवद्रव्यसे पूजा करने में मन प्रसन्नताका यदि अनुभव करता है तो भगवानकी भक्ति नहीं की, ऐसा कैसे कहा जाय ? केसर-चंदन आदिकी तरह जिनमंदिर और जिनप्रतिमा भी प्रभुभक्तिके कारण सामग्रीमें समाविष्ट है, क्योंकि यह न हो तो भी द्रव्यपूजा द्वारा होनेवाली प्रभुभक्ति हो नहीं सकती / प्रभुभक्तिकी सामग्री स्वरूप जिनमंदिर और जिनप्रतिमा स्वद्रव्यके न हो (देवद्रव्यके भी हो) तो भी भक्ति की है ऐसा कहा जाता है, तो प्रभुभक्तिकी सामग्री स्वरूप पुष्पादि स्वद्रव्यके न हो,