________________ '202 - धार्मिक-वहीवट विचार जो अपने निजी खर्चसे तीर्थयात्रा कर सके ऐसा नहीं, ऐसे श्रावकः | को अन्य कोई संपन्न श्रावक यात्रा कराये तो निर्धन श्रावक अत्यंत रोमांचित होकर तीर्थयात्रा करता है / उसी प्रकार कोई संपन्न श्रावक पालिताणा श्री आदीश्वरदादाके दरबारमें प्रथम पूजाकी घीकी बोली बोलकर, किसी निर्धन साधर्मिकको प्रथम पूजा करनेका सुअवसर दे तब उसके आनंद-उल्लासकी सीमा नहीं रहती / यह सब क्या अनुभवसिद्ध नहीं ? अन्यके द्रव्यसे होनेवाली तीर्थयात्रासे यदि लाभ प्राप्त न होता हो तो संघ निकालनेका अनुष्ठान ही विहित न होता / ' संघयात्रामें तो वे यात्रालु श्रावक उतने दिनोंके लिए व्यापार, अब्रह्म आदि प्रवृत्तियोंका त्याग करता है, अतः उन्हें लाभ प्राप्त होता है / ऐसी दलील यदि करनी हो तो 'अन्यके द्रव्यसे प्रभुपूजा करने में भी निर्धन श्रावक, उतने समय तक सांसारिक प्रवृत्तिसे दूर हो जाता है / तो उसका लाभ उसे क्यों नहीं ?' ऐसी दलील हो सकती है / उपरान्त संघयात्राविषयक उक्त दलीलसे तो ऐसा सिद्ध होता है कि उसे सांसारिक प्रवृत्तिका त्याग करनेका लाभ प्राप्त हुआ, लेकिन प्रभुभक्तिका कोई लाभ प्राप्त न हुआ, जो उचित नहीं / अतः अन्यके पैसोंसे होनेवाली तीर्थयात्रा या प्रभुपूजामें प्रभुभक्तिका लाभ स्वभावोल्लास अनुसार होता ही है, ऐसा मानना ही उचित होगा / / (3) उपरोक्त अनेक शास्त्रपाठ आदिकी विचारणासे, 'परद्रव्यसे पूजा करनेसे भी लाभ प्राप्त होता है ही।' यह जब शास्त्रमान्यके रूपमें प्रमाणित होता है तब 'न्याय द्रव्यविधि शुद्धता....' आदि परसे 'परद्रव्यसे जिनपूजा करनेसे लाभ प्राप्त नहीं होगा, 'ऐसा माना नहीं जा सकता / न्यायोपार्जित द्रव्य हो तो उत्कृष्ट लाभ हो, 'अन्यायसे प्राप्त हो तो उसकी शुद्धि बनी न रहने से, उतना लाभ प्राप्त न होगा' उतना अर्थ निकाला जाय / संघने या किसी श्रावकने जैसी व्यवस्था की हो, उसी प्रकार उस द्रव्यका उपयोग किया जाय तो, उतनेसे वह द्रव्य अन्यायोपार्जित हो नहीं जाता / हाँ, ' सभी दो दो पुष्प चढाएँ / ऐसी व्यवस्था निश्चित की गयी हो और वहाँ कोई एक ज्यादा फूलको छिपाकर तीन फूल अर्पित करे तो वह अवश्य अन्यायप्राप्त कहा जाय / स्वद्रव्य नहीं उतने मात्रसे यदि अन्यायोपार्जित हो जाता हो तो जंगलमेंसे फूल चुनकर या नदीमेंसे निर्मल जल भरकर प्रभुभक्ति करनेवालेको सुंदर लाभ प्राप्त होनेके अनेक दृष्टान्त