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________________ 194 धार्मिक-वहीवट विचार पूजा निमित्त बोली जानेवाली उछामनी अथवा स्वप्न बोली / इस द्रव्यका जिनेश्वरदेवकी भक्तिके सभी कार्योंमें उपयोग किया जाय / क्या केसर-चन्दनपूजा आदि जिनेश्वर देवकी भक्तिका कार्य नहीं कि जिससे उसमें देवद्रव्यका उपयोग किया न जाय ? ___'विजयप्रस्थान' नामक पुस्तकमें स्वयं पू. आ. श्री रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजने भी अपना अभिप्राय दिया है कि 'देवद्रव्य जिनभक्ति करनेके लिए, जिनभक्तिके उपकरणोंके लिए उपयोग किया जाय / ' मूलभूत बात यह है कि 'जिनपूजा स्वद्रव्यसे ही की जाय / ' ऐसा उक्त वचन पकडना यह शास्त्रानुसारी बात नहीं, किन्तु अनेक शास्त्रोंसे और स्वयं उस 'द्रव्य सप्ततिका और श्राद्धविधि शास्त्र के अन्य वचनोंसे भी विरुद्ध हैं / क्योंकि उन दोनों ग्रन्थोंमें भी (डी) और (एफ) में निर्दिष्ट शास्त्रपाठों द्वारा देवद्रव्यमेंसे पूजा आदि भी होता है, यह स्वयं स्पष्ट हुआ है / प्रश्र : तो फिर 'देवमंदिरमें देवपूजा भी स्वद्रव्यसे ही यथाशक्ति करें / ' ऐसा 'ही' सहित निर्देश करनेवाला 'द्रव्य सप्ततिका-श्राद्धविधि' में जो पाठ है उसकी ओर क्या आँखे मूंद कर बैठे रहें ? क्योंकि 'ही', देवद्रव्य आदि स्वरूप सभी प्रकारके परद्रव्यसे जिनपूजाके निषेधका आदेश देता है। ___ उत्तर : नहीं, एक भी शास्त्रपाठकी उपेक्षा की' न जाय / लेकिन उस शास्त्रपाठ को यदि ठीक रूपसे देखा जाय तो कोई विरोध या कोई समस्या ही नहीं रहती / शंका तो यह उपस्थित होती है कि 'भोले-भाले लोगोंको गलत मार्ग पर चढ़ानेके लिए ही क्या अधूरा शास्त्रपाठ तो पेश नहीं किया गया ?' ऐसी शंका इस लिये पडती है कि उस समुचे पाठको देखते ही 'सर्वप्रकारके परद्रव्यका व्यवच्छेद करनेके लिए प्रस्तुत पाठमें 'ही'का उपयोग किया है' ऐसी शंका भी खड़ी रह नहीं सकती / देखें उस पाठ को (एल) श्राद्धविधि (पृ. 80), द्रव्यसप्ततिका (पृ. 14) देवगृहे देवपूजापि स्वद्रव्येणैव यथाशक्ति कार्या, न तु स्वगृहढौकितनैवेद्यादिविक्रयोत्थद्रव्येण, देवसत्कपुष्पादिना वा, प्रागुक्तदोषात् / अर्थ : देवमंदिरमें (संघके मुख्यमंदिरमें) देवपूजा भी स्वद्रव्यमेंसे ही यथाशक्ति करें / न कि अपने गृहमंदिरमें समर्पित नैवेद्य आदिका विक्रय
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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