________________ 192 धार्मिक-वहीवट विचार 'यह देवंद्रव्य है और उसमेंसे पूजा आदि हो सकता है / ' यह स्वीकारना योग्य है / प्रश्न : इन पाठोंमें द्रव्यकी जो बात है, उसे हम देवद्रव्य तो मानते ही हैं, लेकिन यह उछामनी द्वारा प्राप्त देवद्रव्य नहीं, लेकिन उससे भिन्न अर्पित प्रकारका देवद्रव्य है / अतः उछामनी द्वारा प्राप्त हुए देवद्रव्यमेंसे पूजा आदि करनेकी छुट्टी नहीं दी जाती..... उत्तर : कोई केवली भगवंत आकर आपके कानोंमें ऐसी स्पष्टता कर गये हैं ? क्योंकि उपर निर्दिष्ट किसी शास्त्रमें ऐसा बताया नहीं है। उपरान्त, 'इन शास्त्रोमें ऐसे देवद्रव्यकी ही चर्चा है / उछामनी आदिसे प्राप्त हुए देवद्रव्य (कि जिसका प्रभुपूजा आदिमें उपयोग किया नहीं जाता उसकी)की यहाँ चर्चा नहीं है / ऐसा यदि समझेंगे तो इन शास्त्रपाठोंमें देवद्रव्यके नाशसे होनेवाले जो अनर्थ बताये गये हैं, वे भी आपके कथनानुसार देवद्रव्यके नाशविषयक ही मानने होंगे और इसके सिवा 'उछामनी आदिसे प्राप्त हुए देवद्रव्यके नाशसे भी ऐसे अनर्थ होते हैं ' ऐसा निर्देश करनेवाला अन्य कोई शास्त्रपाठ तो मिलता ही नहीं। (क्योंकि शास्त्रपाठ जो भी मिलता है उसमें उल्लिखित देवद्रव्यको तो आप उछामनीसे प्राप्त हुए देवद्रव्यसे अलग समझते हैं।) अतः आपकी मान्यतानुसार ऐसा फलित होगा कि उछामनी द्वारा प्राप्त हुए देवद्रव्यके नाश करने में ऐसे ऐसे अनर्थ नहीं होते / " शंका : यह देवद्रव्यके नाशके बारेमें शास्त्रमें जो बातें बतायीं है, उसके उपलक्षणसे ही उछामनी द्वारा प्राप्त देवद्रव्यविषयक बातका शास्त्रमें उल्लेख न होने पर भी, उस देवद्रव्यके नाशके बारेमें भी उसे समझ लेना चाहिए / समाधान : उपलक्षणसे उछामनी द्वारा प्राप्त देवद्रव्यके नाशविषयक बात समानरूपसे ली जा सकती है तो उपलक्षणसे ही, उसके उपयोगके बारेमें भी क्यों न ली जाय ? मतलब कि उपलक्षणसे नाशविषयक बात ग्रहण की जाय और उपयोगविषयकका स्वीकार किया न जाय, उसमें कोई विनिगमक नहीं है / अतः ऐसा मानना योग्य है कि ये सारे शास्त्रकारोंने किसी भी विभागकी विवक्षाकी बिना अपेक्षा किए, सामान्यसे ही देवद्रव्यके उपयोग और उसके नाशसे होनेवाले अनर्थों का निरूपण किया है / और इसी लिए, ये सारे शास्त्र पाठ, देवद्रव्यसे जीर्णोद्धार करनेका विधान जैसे करते हैं वैसे, समान रूपसे, देवद्रव्यसे पूजा, महोत्सवादि करनेका