________________ परिशिष्ट-२ 191 देवद्रव्यके भक्षणसे उत्पन्न पापोंके नाशके लिए, संकाश श्रावकने ‘शेष सारा देवद्रव्य होगा' ऐसा अभिग्रह लिया है / अत: वह सारा देवद्रव्य ही बन गया। फिर भी, उसमें से पूजा महोत्सव आदि करायें हैं, यह उसमें स्पष्ट है। विरोधपक्षका इन पाठोंके विषयमें ऐसी मान्यता है कि "ये पाठ पूजाकी विधिके निरूपणार्थ अप्रस्तुत है / ये पाठ तो सचमुच देवद्रव्यकी महिमा विविध प्रकारकी पूजा, महोत्सव, स्नात्र, यात्रादि निमत्त अलग अलग रखे हुए और देवभक्ति निमित्तक होनसे देवद्रव्यरूप पहेचाने जाते तद्तद् प्रकारके देवद्रव्य द्वारा निष्पन्न होते हुए पूजा महोत्सव यात्रादि कार्योंसे उत्पन्न शासनप्रभावना और उससे ऐसे प्रकारकी देवद्रव्यकी वृद्धि करनेके श्रावकके कर्तव्यके विषयमें निर्देश करनेवाले हैं / इस मान्यताके बारेमें विचारणा :. (1) इस प्रस्तुत लेखमें "पूजाकी विधिका निरूपण नहीं हो रहा और विधिके रूपमें ये पाठं रखे गये नहीं है"। ये तो जो सुज्ञ हो, उसके लिए स्पष्ट ही है. / पूजाकी विधिके निरूपणके लिए ये पाठ रखे ही नहीं है, तो फिर 'पूजाकी विधिके निरूपणके लिए अप्रस्तुत है / ' ऐसा कहनेकी कोई आवश्यकता नहीं रहती / ये पाठ तो ऐसा निर्देश करनेके लिए रखे गये हैं कि देवद्रव्यसे पूजा आदि तो हो ही नहीं सकती, एसा एकान्त गलत है, क्योंकि देवद्रव्यंसे भी पूजा आदि हो सकती है ऐसा ये शास्त्रपाठ स्पष्ट निर्देश देते हैं / ' बाकी 'द्रव्य सप्ततिका'का 'स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनी चाहिए', यह पाठ भी व्यापक रूपसे पूजाकी विधिका निरूपण करनेके लिए नहीं, यह इस लेखमें अन्यत्र स्पष्ट किया है / (2) 'ये पाठ तो सचमुच देवद्रव्यकी महिमा जनानेवाले हैं / ' ऐसी मान्यता किस बातकी स्पष्ट ता करते हैं ? देवद्रव्यसे प्रभुपूजा-स्नात्र आदि द्वारा प्रमोद, सम्यक्त्व प्राप्ति आदि महिमारूप है / अतः देवद्रव्यसे पूजा करने में देवद्रव्यकी हानि होगी ऐसा शोरगूल मचाना तो व्यर्थ ही सिद्ध हुआ न ! (3) 'देवद्रव्यरूप पहचाने जाते' ऐसा जो शब्दप्रयोग किया है, उससे तो संशय होता है कि 'सचमुच, इसे देवद्रव्य मानते हैं कि नहीं ?' यदि देवद्रव्य मानते हों तो उसमेंसे पूजा आदि हो सकता है, यह आपके वाक्यसे स्वयं स्पष्ट है / यदि नहीं मानते, तो क्या उसमेंसे साधर्मिक भक्ति आदि अन्य कार्य करनेकी छुट्टी देते हों ? यह तो देनेवाले ही नहीं / अतः,