________________ 186 धार्मिक-वहीवट विचार कर करें / ये शास्त्रपाठ भी उस बातका समर्थन करता है कि जिनपूजा तो स्वद्रव्यसे ही करनी चाहिए। यदि अपने पास धन न हो तो शरीरसे संपन्न हो ऐसे देरासर संबंधी अन्य कार्य करें / लेकिन अन्यके धनसे (या देवद्रव्यसे) द्रव्यपूजा न करें / 'उपदेश प्रासाद में आया हुआ अभ्यंकरसेठके नौकरका दृष्टान्त भी इसी बातका समर्थन करता है / ___ (3) 'न्यायद्रव्यविधिशुद्धता' 'पाँच कोडिना फूलडे' आदि भी न्यायोपार्जित स्वद्रव्यसे जिनपूजा करनेकी बात का समर्थन करते हैं / (4) भगवानकी पूजा, यह श्रावक का कर्तव्य है / भगवान को स्वयं अपनी पूजाकी आवश्यकता नहीं / अत: वह भगवानका कार्य नहीं / श्रावक अपना कार्य भगवानके द्रव्यसे कैसे कर पाये ? उपरान्त भगवानकी चीजसे भगवानकी पूजा करनेमें श्रावकको लाभ भी कौनसा होगा ? उसमें भगवानकी भक्ति कौनसी मानी जाय ? (5) उपरान्त, इस प्रकार देवद्रव्यमेंसे यदि जिनपूजा होने लगेगी तो फिर श्रावक स्वद्रव्यसे पूजा करनेका कार्य धीरे धीरे छोडने लगेंगे / (6) प्रतिदिन देवद्रव्यमेंसे केसर-चंदन-दूध आदि आनेसे देवद्रव्यको भारी नुकसान होगा, जो महाअनर्थ का कारण है, उपरान्त इस देवद्रव्यकी हानि होनेसे जीर्ण देरासरोंका जीर्णोद्धार रूक जायेगा / (७)के सर आदिकी व्यवस्था आखिर साधारण द्रव्यमें से हो सकती है / संमेलनने 'देवद्रव्यमेंसे भी यह हो सकेगी' ऐसा प्रस्ताव करनेसे देवद्रव्यको साधारण-द्रव्यमें ले जानेका भयंकर दोष उपस्थित होगा / इस प्रकार शास्त्र और तर्कको ध्यानमें लेते हुए सोचने पर यह स्पष्ट दीख पडता है कि संमेलन द्वारा किया गया प्रस्ताव अयोग्य है, ऐसा विरोधी वर्गका मानना है / संमेलनके प्रस्तावके विरोधी वर्गकी इन दलीलोंके बारेमें थोडा गौरसे सोचे : (1) 'श्राद्धविधि' और 'द्रव्य सप्ततिका के उस पाठका विचार बादमें करें / पहले निम्नलिखित पाठके अर्थ पर गौर करें :