________________ - परिशिष्ट - 2 देवद्रव्यविषयक ठराव पर चिन्तन ___ - गणि श्री अभयशेखरविजयजी विक्रम संवत २०४४में अहमदाबादमें हुए मुनि संमेलनमें ठराव हुआ कि तथाविध परिस्थितिमें स्वप्न आदिकी उछामनीका द्रव्य कि जो देवद्रव्यके रूपमें प्रसिद्ध है, उसमेंसे भी केसर-सुखड आदि सामग्रीका संपादन करनेकी इस प्रस्तावमें छुट्टी दी गयी है, यह स्पष्ट है / जिससे एक वर्गको यह प्रस्ताव अयोग्य-शास्त्रविरुद्ध, देवद्रव्यको हानिकारक मालूम होता है / वे मुख्यरूपसे निम्नानुसार दलीलें पेश करते हैं : ___(1) श्राद्धविधि' तथा 'द्रव्यसप्ततिका' ग्रन्थमें ऐसा पाठ है कि'देवगृहे देवपूजाऽपि स्वद्रव्येणैव यथाशक्ति कार्या' - अर्थ : देवमंदिरमें देवपूजा भी स्वद्रव्यसे ही यथाशक्ति करनी चाहिए / इसमें स्पष्ट सूचित किया है कि जिनपूजा यह स्वद्रव्यसे ही करनेका अनुष्ठान होने से , देवद्र व्यसे उसे करना, यह शास्त्राविरुद्ध (2) श्राद्धदिनकृत्य और श्राद्धविधि में निम्नानुसार पाठ आता है कि, -- अनुर्द्धिप्राप्तस्तु श्राद्धः स्वगृहे सामायिकं कृत्वा केनापि सह ऋणविवादाद्यभावे ईर्यायामुपयुक्तः साधुवच्चैत्यं याति नैषेधिकीत्रयादि भावपूजानुयायिविधिना / - स च पुष्पादि सामग्यभावात् द्रव्यपूजायामशक्तः सामायिकं पारयित्वा कायेन यदि किञ्चित्पुष्पग्रथनादि कर्तव्यं स्यात् तत्करोति / अर्थ : निर्धन श्रावक अपने घर सामायिक लेकर, किसीके साथ कर्जविषयक विवाद आदि न हो तो साधुकी तरह, ईर्या समितिमें उपयुक्त बनकर तीन निसिही आदि भावपूजानुसारी विधिके पालनपूर्वक देरासर जाय / पुष्प आदि सामग्री न होनेके कारण, द्रव्यपूजामें अशक्त हो तो वह शरीरसे हो सके ऐसे पुष्प-गुम्फन आदि कार्य यदि हो तो वह कार्य सामायिक पार