________________ 179 परिशिष्ट-१ उपरान्त; कहीं कहीं पर तो पूजारीलोग सरकारी-प्रोत्साहनके कारण सर उठाकर बातें करने लगे हैं / श्रमणोने संमेलनमें उसके बारेमें दो गाँवके प्रसंगोंका बयान दिया था / ___ एक स्थान पर तो ट्रस्टीके साथ झगडते हुए पूजारीने गुस्सेमें आकर जिनबिम्बका सर, शरीरसे अलग कर दिया था / दूसरी जगह, पूजारीने देरासरमें अपवित्रता करने पर उसे निकाल दिया, तो उस गाँवके बाकी सभी पूजारियोंने हडतालका एलान कर दिया / आखिर संघको झुकना ही पड़ा / सिद्धगिरि जैसे स्थलोमें भी आशातनासे लेकर हडताल पर जानेकी धमकिर्यां जैसी अनेक बातें दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं / जब पूजारियोंके युनियन बनेंगे और कानूनी तौर पर अपनी मांगे पेश करेंगे, कानूनी मुकद्दमे पेश करेंगे और रू. ७००से लेकर रू. 2000 तकके वेतन देनेके लिए मजबूर करेंगे तब पूजारी वर्ग (भायखला, शंखेश्वर, पानसर आदि स्थानोंकी जाँच करें / ) के लिए संमेलनके इस प्रस्तावका विरोध करनेवाले महानुभावोंको भी यही सोचना होगा / __ यथाशीघ्र पूजाकार्य पूरा कर देनेके ! लिए पूजारीलोग, अत्यंत तीक्ष्ण और कर्कश ऐसी आधुनिक बालाकुंजी (भूतकालकी बालाकुंजी अत्यन्त मुलायम और मृदु थी / ) प्रभुजीके अंग-उपांगो पर इतने जोरसे घिसते हैं कि जिनबिम्ब को साक्षात् जिनेश्वरदेव माननेवाले भक्तजन, उस क्रूरता-पूर्ण द्रश्य को देख भी नहीं सकते / इस प्रकार बालाकुंजी प्रतिदिन घिसनेसे जिनबिम्ब घिस जाते हैं / उसमें गड्डे बन जाते हैं / पानी जमनेसे नील आदि जमने लगती है / अतः जो पंचधातुके प्रतिमांजी होती हैं, उनकी हालत तो और भद्दी हो जाती है / बालाकुंजीके आक्रमक घर्षणसे उनकी आंखे, कान, नाक हमेशाके लिए घिसकर नामशेष हो जाते है / ये प्रतिमाएँ इस प्रकार घिस जानेसे, हमेशाके लिए अपूज्य बनी रहती हैं / पंचधातुको जो जो प्रतिमाएँ धरतीमेंसे बाहर निकलती हैं, तब उनकी आँखे, नाक, कान बिलकुल सुंदर, दर्शनीय और अखंडित होते हैं / ये बिम्ब पूजारियोंके हाथ पड़ने पर (या वैसे कठोर हृदयवाले श्रावकोंके हाथों पडने पर) दस सालमें ही आँख, कान, नाकरहित हो जाते हैं / ऐसा होनेके कारणोमें उनकी लापरवाही, भक्तिहीनता, कठोरता और स्वार्थ ही हैं / ___दूसरी बात संमेलनके श्रमणोंको यह भी जानने मिली कि गाँवोके टूटनेके कारण, वहाँ जैनोंकी आबादी कम होते होते शून्य पर आ पहुँची