________________ सावधान ! 'शक्तिसंपन्न जैनोंको स्वद्रव्यसे जिनपूजा करनी चाहिए।' यह हमारा सनातन-शाश्वत जोशीला प्रचार है / इसीलिए तपोवनके सभी बालक हमेशा स्वद्रव्यसे जिनपूजा करते हैं / लेकिन सावधान ! ___उससे कोई यह कहे कि देवद्रव्यसे पूजा करनेमें देवद्रव्यके भक्षणका पाप लगता है तो पू. पाद रामचन्द्रसूरीश्वरजी म. साहबके अनुयायियोंकी वह बात को किसी भी प्रकारका शास्त्रपाठ नहीं मिलता। उससे विरुद्ध देवद्रव्यमेंसे भी पूजादि हो सके और पूजारीको वेतनादि | दिया जाय, ऐसे सैंकडोंकी तादादमें शास्त्रपाठ मिलते हैं। उपरान्त, हमारे स्वर्गीय गुरुदेव - पू. पाद कमलसूरीश्वरजी म. सा., | पू. पाद लब्धिसूरीश्वरजी म. सा., (खंभात, 1976 का संमेलन) तथा पूज्यपाद सागरानंदसूरीश्वरजी म. सा.(आगम ज्योत), पूज्यपाद प्रेमसूरीश्वरजी | म. सा., पू. पाद पं. भद्रंकर विजयजी म. सा., पू. पाद रविचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा., पू. पाद कनकचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा., पू. पाद जंबूसूरीश्वरजी म. सा., आदि अनेक महापुरुषों द्वारा लिखे गये पत्रोंमें इस बातका जोरोंसे समर्थन किया गया है। फिर भी, इस विषय पर होहल्ला मचाना, 2044 के संमेलनीय आचार्योंको 'उत्सूत्र भाषी' घोषित करना, उन्हें 'कुगुरु' कहना, यह सब कितना उचित कहा जाय ! स्वयं ही शास्त्रोंके ज्ञाता है, शेष अन्य सभी बुद्धिहीन हैं, ऐसा विचार बिलकुल अस्थान पर हैं। श्री संघके भाई-बहन, अच्छी तरह समझ लें कि हमारी ओरसे घोषित की जा रही सारी बातें शास्त्रीय हैं / शत प्रतिशत यथार्थ हैं / शास्त्रको अग्रसर कर संघर्ष ही करनेकी उनकी मनोवृत्ति हो तो, | उसके निवारणका हमारे पास कोई उपाय नहीं है /