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________________ वैयावच्चमें उपयोगमें लायी जा सकेगी / (विपक्षका मत निषेधमें है / ) ... याद रहे : देवद्रव्य और गुरुद्रव्यके जो निर्णय हमारे द्वारा घोषित किये गये हैं, वे निर्णय केवल हमारी बुद्धिसे किये नहीं हैं, लेकिन वे निर्णय वि. सं. २०४४में संपन्न हुए संमेलनके आचार्योंने अनेक शास्त्राधारोंके साथ किये हैं / उन्होंने उस विषयमें सर्वानुमतसे किये प्रस्तावोंके स्वरूपमें हैं / यदि उन निर्णयों को 'उत्सूत्र' कहने हों तो उन सभी आचार्योंको "उत्सूत्रभाषी' कहने होंगे / उन्हें 'मिथ्यात्वी' कहने होंगे / ऐसा कथन पक्षपरस्तीसे प्रेरित मालूम होता हैं / केवल स्वयं सुगुरु और शेष सभी कुगुरु - ऐसा प्रतिपादन करना, वह शायद इतिहासकी प्रथम घटना होगी /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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