________________ परिशिष्ट-१ 177 प्रसंगोंमें अत्यंत स्वाभाविक रूपसे होनेवाला विजातीय परिचय आदि बातें ___ इस प्रस्तावका विरोधकरके 'घोर शिथिलाचारको प्रसारित करनेवाला मुनि संमेलन' उस रूपमें प्रजाको उभारनेवाले महानुभावोंसे तो आग्रहपूर्ण प्रार्थना है कि उपर निर्दिष्ट आसक्तिजनक जन्मस्थानोंके विषयमें हम सब साथ मिलकर गंभीरतासे सोचें / इन बातोंका छिपाव न करें / ' - यद्यपि विशिष्ट पुण्यशक्तिवाले श्रमण तो धनवान श्रावकोंको स्वद्रव्यसे ही मुनिभक्तिका लाभ उठानेके लिए प्रेरित करते ही रहेंगे, क्योंकि अनेक सुश्रावक ऐसे लाभके अत्यन्त चाहक होते हैं, लेकिन उसके साथ साथ उपर्युक्त व्यवस्था भी बनी रहे तो चारों ओरकी इस विषयकी आवश्यकताको / विशेषरूपसे श्रावकसंघ संफल कर सके / / जो श्रमण पवन-पावडीकी तरह विहार करते हैं, उन्हें गाँवोमें साधुवैयावच्च, उद्विग्न साधर्मिकों और उपाश्रयोंकी जरूरतोंके बारेमें जरा-भी जानकारी नहीं होती / वे व्यवस्थित ढंगसे प्रत्येक गाँवमें जाकर इस विषयकी पूछताछ करें, तो उन्हे इन बातोंमें कितनी उलझनें पैदा हुई है, कैसी संचालनविषयक . अराजकता पैदा हुई हैं, उसकी सही जानकारी मिल जरुर सकती है / इन बातोंके लिए तो पाँच, दस करोड रूपये भी कम महसूस हो, ऐसी हालत बनी हुई है /