________________ 168 धार्मिक-वहीवट विचार उसे पूजा देवद्रव्यके रूपमें क्यों मानी न जाय ? उसका प्रत्युत्तर यह है कि यह रकम भेंट रूप नहीं है / माल लेकर उसके बदलेमें जो रकम दी जाय, उसे कभी भेंट कही नहीं जाती / प्रथम आदिमाला पहनने रूपमें माल मिल गया, उसके बदलेमें जो रकम दी गयी, उसे भेंट कैसे कही जाय ? इसीलिए बोली-चढावेकी रकमें पूजा देवद्रव्यमें जमा न की जायँ / उपरान्त, पूजा देवद्रव्यमें तो जो रकम भेंट रूप दी जाय उसमें शर्त की जाती है कि 'मेरी रकममेंसे हमेशा पुष्प खरीदे जाय, केसर लाया जाय या अमुक प्रकारका आभूषण लाया जाय / ' आदि / ऐसी कोई शर्त, बोली-चढावेकी रकमके साथ न होनेसे भी, यह रकम पूजादेवद्रव्य विभागमें कैसे जमा हो सकती है ? ____इस प्रकार जिनमंदिरविषयक तमाम कार्योंका (पूजारी, नौकर आदिके वेतन, केसरपूजा आदि) निर्वाह होना असंभव हो, वहाँ उस निर्वाहके संकल्पसे उपलब्ध इस बोली-चढावेकी रकम उपयुक्त होती है / अतः उसका उपयोग पूजा-देवद्रव्यमें किया नहीं जाता / (यद्यपि भूतकालीन रिजर्व फंडका द्रव्य, भेंट द्रव्य ही है, लेकिन वह 'निर्वाहक' बिनाशर्तका भेंट द्रव्य है / अत: उसे पूजादेवद्रव्यमें माना नहीं जाता / ) इसी लिए बोलीकी रकम कल्पित देवद्रव्यमें ही स्वीकार्य मान्य करनी होगी / सारांश यह है कि पूजाके कार्योंके लिए भेंट' रूपमें, शर्तके साथ प्राप्त द्रव्य पूजा देवद्रव्य कहा जाय / उसका उपयोग जिनके देहके निमित्त ही किया जाय / कल्पित देवद्रव्यका जिनमंदिरके सर्व कार्योंमें उपयोग, जीर्णोद्धार, जिनपूजा, पूजारी आदिको वेतन आदिमें किया जाय / यहाँ मालूम होगा कि कल्पित देवद्रव्यमेंसे ही पूजारी आदिको वेतन आदि दिया जाय / निर्माल्य-देवद्रव्यमेंसे जिनकी अंगपूजा तो की नहीं जा सकती / पूजा देवद्रव्यसे मुख्य रूपसे जिनपूजा ही की जा सकती है /