________________ परिशिष्ट-१ 167 जाता है) इस प्रकार उस प्राप्त पूजाद्रव्यका उपयोग जिनेश्वरदेवके देह पर केसरपूजा, आभूषण चढाने आदिमें किया जाय अथवा अग्रपूजामें भी हो सकता है / निर्माल्य देवद्रव्य : निर्माल्य दो प्रकारके हो सकते हैं / प्रभुजीको समर्पित चढा हुआ या सामने रखा हुआ द्रव्य निर्माल्य कहा जाता है / अर्थात्, वरख आदिकी उतराई, फल, फूल, नैवेद्य, वस्त्र, अक्षत, नगद रकम आदि निर्माल्य द्रव्य कहा जाय / इनमेंसे जो थोडे ही समयमें विगन्धि (दुर्गन्धवाला) शोभारहित आदि रूपमें परिवर्तित हो जाय ऐसे फूल, नैवेद्य आदिको विगन्धि निर्माल्य द्रव्य कहे गये हैं; लेकिन उनके अलावा अक्षत आदि प्रभुजीको समर्पित किये होनेसे अविगन्धि निर्माल्य द्रव्य कहे गये हैं / इनकी विक्रीसे जो रकम उपलब्ध हो, उसमेंसे जिनकी अंगपूजा तो नहीं हो सकती / हाँ, उसमेंसे गहने बनवाकर प्रभुजीके अंग पर चढाये जा सकते हैं / यदि आभूषणोंकी आवश्यकता न हो, तो अन्य देरासरोंमें आभूषणोंके लिए उस रकमका उपयोग किया जाय / यदि केसर-बरासके अभावमें प्रभुपूजा रूक जाती हो तो ऐसे समय केसर-बरास आदि लाने में भी उपयोग किया जाय / / ... इन दोनों प्रकारके निर्माल्य द्रव्यको रकमका उपयोग मंदिरोंके जीर्णोद्धारादिमें अवश्य किया जाय / कल्पित देवद्रव्य : जिनमंदिरविषयक सभी कार्योंका निर्वाह करनेकी कल्पनाकर उपलब्ध किये गये द्रव्यको कल्पित देवद्रव्य कहते हैं / भूतकालमें रिजर्व फंडके रूपमें रखनेके लिए श्रीमंत भक्त जो द्रव्य देते-जमा कराते उसे कल्पित देवद्रव्य कहा जाता था / यथा संभव मुसीबतके दिनोंमें ही इस रिजर्व फंडके स्वरूप निर्वाह निमित्त द्रव्यका उपयोग किया जाता था / समय गुजरने पर निर्वाहार्थ फंड भक्तोंके पाससे प्राप्त करने में तकलीफ होने लगी, तब निर्वाह करनेकी कल्पनासे बोली-चढ़ावेकी पद्धति शुरू की गयी / उसके द्वारा मिलनेवाली कल्पित देवद्रव्य मानी जाने लगी / स्वप्नादिकी इस बोलीमें स्पर्धा होती / प्रथम क्रम पानेके लिऐ ऐसी बोली होती / भक्तजन उस बोलीसे स्वयंको मिलनेवाले अधिकारका उपभोग करता और उसके बदलेमें उछामनीकी रकम बिना किसी शर्त उसके आयोजकको दे देते / ____ कोई तर्क कर सकता है कि बोलीकी यह रकम 'भेट' स्वरूप बननेसे,