________________ 166 धार्मिक-वहीवट विचार __वास्तवमें तो 'जिनभक्ति साधारण' नामक केसर आदिके लाभसे बारहमासी बोलीका धन एकत्र करनेकी नीति ही उसके समर्थक महानुभावोंके विचारोंसे विरुद्ध जाहिर होती है / वे जैसे देवद्रव्यसे प्रभुपूजा न हो वैसे पूजा तो स्वद्रव्यसे ही की जानी चाहिए, ऐसी शक्ति न हो तो देरासरमें काजो आदि लेकर, या किसीको केसर आदि घीसकर या फूलोंकी माला बनाकर, संतोष मानना पडे- ऐसा मानते हैं, अभयंकर सेठके दो नौकरोंका दृष्टान्त बारबार देकर, इस बातकी वे पुष्टि करते रहते हैं, तो प्रश्न यह है कि फिर यात्रिक आदि कैसे बारह मासके केसर आदिके चढावेके पर- धनसे प्रभुपूजा कर पाये ? उपरान्त, स्वद्रव्यका ऐसा आत्यन्तिक आग्रह रखना की उसकी मर्यादामें रहकर, मामूली द्रव्योंसे भी प्रभुपूजा करना, लेकिन देवद्रव्यसे (कल्पित देवद्रव्यसे) उत्तम द्रव्यसे भी प्रभुपूजा हो तो भी, ऐसा नहि ज करना यह बात विशिष्ट अवसरों पर उचित मालूम नहीं होती / अन्तमें द्रव्यका (उपकरण ) महत्त्व नहीं लेकिन शुभभाव वृद्धिका (अन्तःकरणका) महत्त्व है / हाँ, यह सच है कि शक्तिमान (धनवान) आत्मा, परद्रव्यादिसे प्रभुपूजन करें तो, उसमें उसे लाभ कम प्राप्त हो (धनमूर्छा न उतरनेके कारण) लेकिन उसे गैरलाभ हो, ऐसा प्रतिपादन कैसे किया जाय ? -देवद्रव्यके तीन उपविभागोंके विषयमें विशेष विचारणा अवधारण (आग्रहपूर्वक के दृढ संकल्प)के साथ देवको समर्पित होनेवाला द्रव्य, देवद्रव्य कहा जाता है / ऐसे देवद्रव्यके तीन प्रकार हैं: पूजा देवद्रव्य : परमात्माके भक्त ऐसा समझते हैं कि जिनप्रतिभा यही साक्षात् जिनेश्वर देव भगवान है / इसी लिए उनका सर्वोत्तम उल्लास, जिनपूजा-अंगपूजा रूप या अग्रपूजा रूपमें द्रव्यका उपयोग करनेमें ही होता भगवंतकी पूजाके लिए ही भक्त लोग तरह तरहकी जो भेंट-सौगादें समर्पित करते हैं, उन सभीको पूजादेवद्रव्य माना जाता है / दुकानोंके किरायेकी आमदनी, लागा, खेत, नगद रकम, केसर या तैयार गहने अथवा तन्निमित्त सोना-चाँदी आदि जो भी भेंटके रूपमें आमदनी हुई हो वह और किरायोंकी आमदनीकी रकम भी पूजादेवद्रव्य कही जाती है / (यही सारी भेंट यदि जिनमंदिरोंके निर्वाहके लिए दी गयी हो, तो उसे कल्पित देवद्रव्य कहा