________________ 164 धार्मिक-वहीवट विचार कल्पित देवद्रव्यमेंसे देनेका निषेध करनेवाले महात्माओंको पहले तो करोडों रूपयोंकी देवद्रव्यकी रकमका बैंक आदि द्वारा मछलियोंकी जाल, कत्लखानेके यांत्रिक साधन आदिमें जो उपयोग होता है, उसके बारेमें राजनीतिका मुकाबला करना अत्यंत जरूरी है / उसके लिए अदालतका आश्रय लेना अत्यंत आवश्यक है / उसके लिए अखबारोंमें शोरगुल मचाना आवश्यक है / इस विषयमें क्यों आज तक कोई ठोस कदम उठाये नहीं गये ?.. संमेलनके श्रमणोंको तो निकट भविष्यकी ओर देखते ही स्पष्ट हो गया है कि पूजारियोंके युनियन (संघ) तैयार होते ही, उतना वेतन कमसे कम दुगुना तो होने जाने वाला है / वह भी बढकर तीन हजार तक थोडे समयमें ही हो जायेगा / इस वेतनको चुकानेकी शक्ति यद्यपि हर प्रकारसे समृद्ध और सम्पन्न संघोंके पास है फिर भी शुद्ध साधारण विभागमें उतनी बडी रकमोंके भंडार वे एकत्र नहीं करेंगे तब वे पूजा (आदान) स्वरूप देवद्रव्यमेंसे ही उन बड़े वेतनोंको चुकाया जायेगा / यह बात बहुत ही अनुचित मानी जायेगी / यदि समृद्ध संघ भी शुद्ध साधारणके पैसोंकी टीप (नोट) करानेमें थक जायेगा तो उस समय, उन संघोंको पूजादि देवद्रव्यमेंसे पूजारी आदि को वेतन आदि देने पर रोक लगाकर कल्पित. देवद्रव्यमेंसे उसकी व्यवस्था करनेके लिए सूचित करना पड़ेगा / / ठरावमें निर्दिष्ट जो बोली-चढावा है, उसकी रकम कल्पित देवद्रव्यमें ले जानेके बाद, उसमेंसे पूंजारीके वेतन आदि दिया जाय, उसके बाद बची रकमको जीर्णोद्धार आदि कार्योंमें ही उपयोगमें लानी चाहिए, उसकी स्पष्टता करनेकी जरूरत नहीं रहती / उसके सिवा संमेलनके ठरावोंके समर्थक श्रमण लोग, ऐसा. भी निर्णय करें कि उस प्रस्तावकी शक्तिसंपन्ना संघ या श्रावक लोग सर्वप्रकारकी जिनभक्ति (पूजारीको वेतन आदि सबकुछ) स्वद्रव्यसे ही करें, इस बातका आग्रह मुख्य रूपसे सभीके सामने व्यक्त करें और उस प्रकार यथाशक्ति उसका अमल भी करें, जिससे कल्पित देवद्रव्यकी वृद्धि होने पर, उसमें बची रकमका उपयोग जीर्णोद्धारादिमें लगातार बढ़ता ही जाय / ऐसा कहा जाता है कि वि. सं. १९९०के संमेलनमें जो ठराव पारित हुआ कि स्वप्नद्रव्यको देवद्रव्यमें जमा करना उचित मालूम होता है / उससे विरुद्ध, इस संमेलनने ठरावको पारित किया है / यह बात यथार्थ नहीं