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________________ परिशिष्ट-१ . 163 तो हर बातमें उपस्थित किये जा सकते हैं / लेकिन जो साधु साधुताकी मस्तीमें जीते करते होंगे वे तो संमेलनके प्रस्तावोंके हार्द और स्वरूप को ही ग्राह्य समझेंगे और उसीके अनुसार आचरण करेंगे / अतः ऐसे झूठे भयस्थानोंकी कल्पना करना उचित नहीं / जहाँ जो भय वास्तविक हो वहाँ भी यदि लाभ विशेष हो तो भय को पार कैसे करना, यही सोचना चाहिए, लेकिन भयकी कल्पनासे बडां संभवित लाभ गँवाना, यह उचित मालूम नहीं होता / ___ कई वर्षोंसे कई जगहें स्वप्नद्रव्यकी आमदनी संपूर्ण साधारणमें या 10 आनी या 6 आनी साधारणमें जमा होती होगी, तब भी उसके सामने सोलह आनी (शत प्रतिशत) रकम देवद्रव्यमें चालू रखनेका कार्य, उन श्रमणोंने ही किया है / व्यर्थके भयस्थान उपजाकर संमेलनके श्रमणोंको बदनाम करनेकी बात बिल्कुल इच्छनीय न होगी / उपसंहारमें इतना बताना आवश्यक लगता है कि संमेलनके ठरावके विरुद्ध हल्लागुल्ला मचानेवाले और उसके लिए अदालत और अखबारों तक पहुँचकर श्रीसंघके लाखों रूपयोंका खर्च-दुर्व्यय करनेवाले महात्मा लोग सर्वप्रथम अपने प्रति पूज्यभाव रखनेवाले संघोंमें देवद्रव्यके तीन विभाग शुरु कराएँ, उनकी अन्योन्य हेरफेर पर रोक लगवा दें, भूतकालकी भूलकी रकमोंको उन उन खातोंमें जमा करवा दें और उन उन संघोंको दोषोमेंसे उगार दें। - उपरान्त, अनावश्यक स्थलोंमें नये जिनमंदिरोंके या तीर्थोके होनेवाले निर्माणमें या चालु कामकाजमें आजसे ही देवद्रव्यका धनव्यय करना बंद करनेका सूचन अपने भक्तोंको करें और स्वद्रव्यका ही वहाँ उपयोग करनेकी आज्ञा दें, चाहे भले ही फिर वह निर्माणकार्य शनैः शनैः पूरा हो और जो अशक्त कक्षाके संघ हों वहाँ शुद्ध देवद्रव्यमेंसे पूजारी आदिको दिये जानेवाले वेतन आदि पर रोक लगाकर अखबारों और अदालतोंके पीछे लाखों रूपयोंका खर्च करनेके लिए तत्पर भक्तों द्वारा उन संघोमें स्वद्रव्य भिजवानेका शुरू कराएँ / यदि एसी कोई व्यवस्थाकी उनके पास तैयारी न हो और संमेलनके ठरावका केवल विरोध ही करते रहते हों तो, * वह कितना उचित होगा ? स्वद्रव्य या साधारण द्रव्यसे अशक्य हो वैसे संघोंमें भी पूजारीके वेतनादि
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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